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________________ 4 * पहला और दूसरा भव प्रदान करेगा, इसका तात्पर्य हमारी समझ में नहीं आता। इसका रहस्य तो सिर्फ केवली ही बतला सकते हैं।" स्वप्न पाठकों के यह वचन सुनकर राजा बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने वस्त्राभूषण आदि से पुरस्कृत कर उन्हें सम्मानपूर्वक विदा किया। शीघ्र ही रानी ने भी यह समाचार सुना। सुनते ही वे आनन्दित हो उठीं। जिस प्रकार पृथ्वी रत्न-भण्डार को धारण कर उसकी रक्षा करती है, उसी प्रकार उस दिन से रानी अपने गर्भ को धारण कर यत्नपूर्वक उसकी रक्षा करने लगी। यथासमय उन्होंने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। जिस प्रकार सूर्योदय होने पर उसके उज्वल प्रकाश से दसों दिशायें प्रकाशित हो उठती हैं, उसी प्रकार उस.पुत्ररत्न के जन्म से राजा विक्रमधन का राज-प्रासाद आलोकित हो उठा। राजा ने बड़ी धूम-धाम के साथ इस पुत्र का जन्मोत्सव मनाया। सभी इष्ट-मित्र और आश्रित-जन भेंट तथा पुरस्कार द्वारा इस अवसर पर सम्मानित किये गये। राजा ने ज्योतिषियों के आदेशानुसार अपने. इस पुत्र का नाम धन रक्खा।' धन का लालन-पालन करने के लिए राजा ने अनेक दाई नौकरों को नियुक्त कर दिया। शुक्ल पक्ष में जिस प्रकार चन्द्र की कलाएँ बढ़ती हैं, उसी प्रकार उनके यत्न से राजकुमार बड़ा होने लगा। धीरे-धीरे जब उसकी अवस्था आठ वर्ष की हुई, तब राजा ने उसकी शिक्षा-दीक्षा के लिए कई अध्यापकों को नियुक्त किया। राजकुमार की बुद्धि बहुत ही प्रखर थी इसलिए उसने थोड़े ही समय में समस्त विद्या-कलाओं में पारदर्शिता प्राप्त कर ली। अन्त में उसने किशोरावस्था अतिक्रमण कर यौवनावस्था-जीवन के वसन्तकाल में पदार्पण किया। धनदत्त और धनदेव नाम से दो पुत्र और हुए। जिन दिनों में अचलपुर में यह सब बातें घटित हो रही थीं, उन्हीं दिनों में कुसुमपुर नामक नगर में सिंह नामक एक बलवान राजा राज करते थे। उनकी पटरानी का नाम विमला था। वह अपने नामानुसार गुण और रूप में विमला ही थी। उसने धनवती नामक एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया था। वह जैसी रूपवती थी, वैसी ही गुणवती भी थी। ऐसी एक भी विद्या कला न थी, जिसका उसने ज्ञान न प्राप्त किया हो। इन्हीं कारणों से उसके माता-पिता उसे पुत्र से भी बढ़कर प्यार करते थे।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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