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________________ ... श्री नेमिनाथ-चरित्र पहला परिच्छेद पहला और दूसरा भव ... इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में अचलपुर नामक एक सुन्दर नगर था। वहाँ विक्रमधन नामक एक प्रतापी और न्याय एवं युद्धप्रिय राजा राज करता था। उस राजा के धारिणी नामक एक रानी थी, जो उसे बहुत प्रिय थी। एक दिन उसने पिछली रात में एक स्वप्न देखा। उस स्वप्न में उसे आमों से लदा हुआ एक आम्रवृक्ष दिखायी दिया, जिस पर भौरे चक्कर लगा रहे थे और कोयलें कूक रही थी। उसे स्वप्न में ही ऐसा मालूम हुआ, मानो कोई रूपवान पुरुष उस आम्रवृक्ष को हाथ में लेकर उससे कह रहा है कि “आज जो यह वृक्ष तुम्हारे आंगन में लगाया जा रहा है, वह यथा समय नव बार अन्यान्य स्थानों में रोपित करने पर उत्तरोत्तर उत्कृष्ट फल प्रदान करेगा।" यह स्वप्न देखते ही रानी की नींद खुल गयी। उस समय सवेरा हो चला था। उसने उसी समय उस स्वप्न का हाल अपने पतिदेव से निवेदन किया। उन्होंने स्वप्न-पाठकों से उसके फलाफल का निर्णय कराने का विचार किया। निदान, राज-सभा में पहुँचते ही उन्होंने कई स्वप्न पाठकों को बुला भेजा और उनसे उस स्वप्न का फल पूछा। उन्होंने पूछा, “राजन् ! रानी का यह स्वप्न बहुत ही अच्छा है। स्वप्न में आम्र वृक्ष दिखायी देने पर सुन्दर पुत्र का जन्म होता है। परन्तु स्वप्न में किसी पुरुष ने रानी से जो यह कहा है कि यथा समय नव बार अन्यान्य स्थानों में रोपित करने पर यह वृक्ष उत्तरोत्तर उत्कृष्ट फल
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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