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130 * नल-दमयन्ती-चरित्र
स्वयंवर के दिन अपने राज कुमारों के साथ दिव्य वस्त्राभूषण धारण कर राजाओं ने मंडप के स्वर्ण सिंहासनों पर स्थान ग्रहण किया उस समय उनकी शोभा देखते ही बनती थी। कोई कौशल पूर्वक सोने का कमल घुमा रहा था, कोई भ्रमर की भांति सुगन्धित पुष्पों की गन्ध ले रहा था, तो कोई फूलों का गेंद उछाल रहा था। सभी अपने अपने वेशपर मुग्ध हो रहे थे। सभी अपने मन में समझते थे कि मैं दूसरों की अपेक्षा अधिक सुन्दर हूँ, इसलिए राजकुमारी मुझे ही वरण करेगी।
यथासमय सखियों से घिरी हुई दमयन्ती ने रम्भा की भांति स्वयंवर मण्डप में प्रवेश किया उसे देखकर नृपतिगण अपना चातुर्य विशेष रूप से प्रकट करने लगे। सबके नेत्र उधर ही जाकर अटक गये। अनेक रामा सफल मनोरथ होने के लिए अपनी कुलदेवी का स्मरण करने लगे। सभी उसकी गतिविधि, उसका वर निर्वाचन देखने के लिए अधीर हो उठे। .. __अन्त में राजा का संकेत होते. ही दमयन्ती की प्रधान परिचारिका उसे भिन्न भिन्न राजाओं को दिखाकर उनका परिचय प्रदान करने लगे। उसने कहा-“हे स्वामिनी ! यह शिशुमारपुर के स्वामी राजा जितशत्रु के पुत्र राजा ऋतुपर्ण हैं। यह इक्ष्वाकु वंश के तिलक समान श्रीचन्द्र राजा के पुत्र चन्द्रराज हैं। क्या इन्हें वरण करने की तुम्हारी इच्छा है.? यह चम्पा नगरी के स्वामी भोगवंशोत्पन्न धरणेन्द्र राजा के पुत्र सुबाहु राजा है। इनसे विवाह करने पर गंगा के सुगन्धित जलकणों से युक्त वायु तुम्हारी सेवा करेगी। यह रोहितकपुर के स्वामी पवन के पुत्र राजा चन्द्रशेखर हैं। इनके अधिकार में बत्तीस लाख ग्राम हैं। क्या तुम इन्हें पसन्द करती हो? यह केसरी राजा के पुत्र मन्मथरूप शशलक्ष्मा को देखो। यह सूर्य वंश के मुकुट समान भृगुकच्छ के स्वामी जन्हुराजा के पुत्र यज्ञदेव हैं। हे सुन्दरि! क्या तुम इन्हें जयमाल पहनाओगी? यह भरतचक्रवर्ती के कुलतिलक राजा मानवर्धन हैं। इनकी कीर्ति सारे संसार में फैली हुई है। यह कुसुमायुध के पुत्र मुकुटेश्वर हैं। इनसे विवाह करने पर चन्द्र
और रोहिणी की भांति तुम दोनों शोभा पा सकते हो। यह कौशलाधिपति निषध नामक राजा है जो ऋषभस्वामी के कुल में उत्पन्न हुए हैं। यह तीनों भवन में विख्यात हैं और यह दोनों कुमार इन्हीं के महाबलवान पुत्र हैं। इनके