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128 * नल-दमयन्ती-चरित्र कन्धे से नीचे उतार दिया। देवताओं ने भी इस समय उन दोनों पर पुष्प वृष्टि की। राजा भीमरथ इस घटना से बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने उस हाथी के मस्तक पर सुगन्धित लेप लगा, उसकी पूजा और आरती की। इसके बाद उन्होंने उसे गजशाला में भेज दिया।
गर्भ काल पूर्ण होने पर रानी ने शुभ मुहूर्त में एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया। उसके ललाट पर सूर्य के समान एक स्वाभाविक तिलक था, इससे वह
और भी सुन्दर मालूम होने लगी। उसका जन्म होने के बाद राजा भीमरथ का प्रताप अधिक बढ़ गया और बड़े राजा भी उसकी आज्ञा मानने लगे। गर्भ धारण के समय रानी ने दावानल से पीडित हाथी को अपने महल की ओर आते देखा था, इसलिए एक मास पूर्ण होने पर राजा ने उसका नाम दवदन्ती (दमयन्ती) रक्खा।
राजा रानी और दास दासियों के लालन पालन से दवदन्ती कुछ बड़ी होकर ठुमुक ठुमुक कर अपने पैरों से चलने लगी। जिस समय वह राजमहल के आंगन में खेलती, उस समय ऐसा मालूम होता, मानो साक्षात् लक्ष्मी खेल रही है। उसके प्रभाव से राज्य की आमदनी बढ़ गयी और राजा का खजाना भी सदा भरापूरा रहने लगा। ___ अब आठ वर्ष की होने पर राजा ने दमयन्ती को कलाचार्यों के पास . अध्ययन के लिए भेजा। कलाचार्य तो उसके साक्षी मात्र बनें। सभी कलाएँ दर्पण में प्रतिबिंब के सदृश उसमें संक्रमित हो गयी। वह 34 कलाओं में प्रवीण बन गयी।
दमयन्ती ने कर्म प्रकृति आदि का भी भलीभांति अध्ययन किया। उस समय किसी भी विद्वान में क्षमता न थी, जो उसके सामने स्याद्वाद् मत का खण्डन कर सके। इस प्रकार दमयन्ती ने जब समस्त कलाओं में पारदर्शिता प्राप्त कर ली, तब उसके आचार्य उसे राजा भीमरथ के पास ले गये। राजा ने उसकी परीक्षा ली, तो वह समस्त विद्या और कलाओं में अद्वितीय प्रमाणित हुई। अन्त में राजा ने धार्मिक शास्त्रार्थ का आयोजिन किया। उसमें भी उसी की विजय हुई। अनन्तर उसने अपनी चतुराई से ऐसी बातें सिद्ध कर दिखायी, जिससे सम्यक्त्वधारी मनुष्यों में उसके पिता दृष्टान्त स्वरूप माने जाने लगे।