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आठवाँ परिच्छेद नल-दमयन्ती-चरित्र
देवलोक से च्युत होने पर वह देव कोशलदेश की अयोध्या नामक नगरी में इक्ष्वाकु वंशोत्पन्न राजा निषधराज की सुन्दरा नामक रानी के उदर से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ और उसका नाम नल पड़ा। दूसरी और विदर्भ देश के कुंडिनपुर नामक नगर में भीमरथ नामक राजा राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम पुष्पदन्ती था। देवलोक से च्युत होने पर क्षीरडिंडीरा देवी ने उसी के उदर से पुत्री रूप में जन्म लिया। . . . .. क्षीरडिंडीरा का जन्म होने के पहले एक विचित्र घटना इस प्रकार घटित हुई कि रानी पुष्पदन्ती को एक दिन प्रात:काल के स्वप्न में ऐसा मालूम हुआ मानो दावाग्नि से भय भीत होकर एक सफेद हाथी उनके राजभवन में घुस आया है। सनी ने सुबह इस स्वप्न का हाल अपने पति से कहा। राजा भीमरथ अनेक शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे। इसलिए उन्होंने कहा—“हे सुन्दरि! इस स्वप्न का फल बहुत ही अच्छा है। मुझे ऐसा मालूम होता है कि कोई पुण्यवान जीव आज तुम्हारे गर्भ में आया है।" ।
राजा रानी इस तरह की बातें कर ही रहे थे, कि इतने में सचमुच, एक विशाल हाथी वहां आ पहुँचा। राजा और रानी ज्योंही कौतूहलवश उसके पास गये, त्योंही उसने उन दोनों को अपने कन्धे पर बैठा लिया। इसके बाद उन्हें लिये ही लिये वह समूचे नगर में भ्रमण करने लगा। वह जिधर जाता, उधर ही . लोग उसका पूजन कर उसे पुष्पामालाएं पहनाते। समूचा नगर घूमने के बाद वह राज भवन के वापस लौट आया और वहां पर उसने राजा रानी को अपने