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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 125 इस समय वर्षा के कारण कांप रहा था। मुनिराज की यह कठिन तपस्या देखकर धन्य का हृदय द्रवित हो उठा। उसने अपना छाता मुनिराज के शिर पर लगा दिया, फलत: मुनिराज को बड़ा ही आराम मिला। इस प्रकार जब तक पानी बरसता रहा, तब तक वह बराबर उनके शिरपर छाता लगाये रहा। इधर मुनिराज ने वर्षा होने तक ध्यान का अभिग्रह किया था, इसलिए जब वर्षा बन्द हुई, तब वे भी ध्यान से निवृत हुए। इसके बाद धन्य ने उनकी चरण सेवा कर नम्रता पूर्वक पूछा- “हे मुनिराज! आज बड़ा ही दुर्दिन है। चारों और जल और कीचड़ ही कीचड़ नजर आता है। ऐसे विषम समय में आपका आगमन यहां पर कैसे हुआ?". ___मुनिराज ने उत्तर दिया-“हे भाई! मैं पाण्डु देश से आ रहा हूँ। मुझे लंका नगरी जाना है, क्योंकि वह गुरुचरण से पावन हो चुकी है। परन्तु वर्षा के कारण मेरी इस यात्रा में बाधा पड़ गयी क्योंकि वर्षा में साधु के लिए मार्ग में चलना मना है। उसी कारण से मैं वृष्टि का अभिग्रह लेकर यहां रह गया। आज सातवें दिन वृष्टि बन्द होने पर मेरा वह अभिग्रह पूर्ण हआ है। अब मैं यहां से किसी बस्ती में चला जाऊँगा।". . . धन्य ने हाथ जोड़कर कहा- “हे प्रभो! रास्ते में बड़ा ही कीचड़ है। आप मेरे भैंसे पर बैठ जाइये। ऐसा करने पर आप आसानी से पास की बस्ती में पहुँच जायेंगे।" ___मुनिराज ने उत्तर दिया—हे गोपाल! साधु किसी जीव पर सवारी नहीं करते। वे ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकते, जिससे दूसरों को पीड़ा या कष्ट हो। साधु तो संदा पैदल ही चलते हैं। धन्य ने कहा-“अच्छा, महाराज! आप मेरे साथ चलिए। क्या आप मेरे नगर को पवित्र न करेंगे?" ___मुनिराज धन्य का अनुरोध मानकर उसके साथ चल पड़े। धन्य बड़े प्रेम से उनको अपने घर पर ले गया। वहां पर उसने मुनिराज को वन्दन कर के कहा-“हे भगवान् ! आप जरासी देर यहां ठहरिए। मैं भैसों को दोह कर अभी आपके पास आता हूँ!"
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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