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________________ 124 * कनकवती से वसुदेव का ब्याह अष्टापद पर्वत पर ले गयी। वहां पर सुरासुर द्वारा पूजित जिन प्रतिमाओं को देखकर उसे बड़ा ही आनन्द हुआ। वह चौबीस जिन प्रतिमाओं को भक्ति पूर्वक वन्दन कर दैवी शक्ति से अपने नगर को लौट आयी। ____ इस तीर्थयात्रा से उसकी बुद्धि धर्म में स्थिर हो गयी। कुछ दिनों के बाद उसने प्रत्येक तीर्थकर को उद्देश्य कर बीस-बीस आयम्बिल किये। साथ ही उसने भक्ति पूर्वक चौबीस जिनों के लिए सुवर्ण के रत्नजड़ित तिलक भी कराये। इसके बाद उसने सपरिवार अष्टापद पर जाकर विधि पूर्वक चौबीसों जिन की पूजा की और सभी प्रतिमाओं के ललाट पर तिलक स्थापित किये। साथ ही चारणश्रमण प्रभृति वहां पर जितने महामुनि थे, उन्हें यथोचित दान दे, उसने अपनी तपश्चर्या के उपलक्ष में उत्सव मनाया। इन कार्यों से उसका मन प्रफुल्लित हो उठा। वह अपने को कृत कृत्य मानती हुई अपने नगर को लौट आयी। अब राजा और रानी के शरीर भिन्न होने पर भी उनके मन अभिन्नं बन गये थे। अपना अधिकांश समय वे धर्म कार्य में व्यतीत करते थे। कुछ दिनों के बाद आयु पूर्ण होने पर समाधि द्वारा उन दोनों ने अपने मानुषी शरीर त्याग दिये। इसके बाद वे देवलोक में देव और देवी के रूप में दम्पति हुए। वहां से च्युत होने पर मम्मन का जीव बहली देश के पोतनपुर में धम्मिल नामक एक गोपाल के यहां पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। वहां पर उसका नाम धन्य रक्खा गया। उधर वीरमती का जीव देवलोक से च्युत होकर एक कन्या के रूप में उत्पन्न हुआ और उसका नाम धुसरी पड़ा। यही धुसरी यथा समय धन्य की पत्नी हुई। धन्य जंगल में भैसें चराया करता था, क्योंकि वह गोपालों का प्रथम कुलकार्य है। एक बार वर्षा के दिन थे और रिमझिम रिमझिम पानी बरस रहा था। जमीन पर कीचड़ हो रहा था और आकाश में बिजली चमक रही थी। घर से निकलने लायक दिन न था, फिर भी धन्य वर्षा से बचने के लिये एक बड़ा सा छाता लेकर, भैसों को चराने के लिए निकल पड़ा। . जंगल में भैंसे चराते समय धन्य ने एक पैर से खड़े हुए प्रतिमाधारी एक साधु को देखा। तपस्या के कारण उनका शरीर बहुत कृश हो गया था और
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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