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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 119 उठकर खड़ी हो गयी और हाथ जोड़कर वसुदेव से कहने लगी-“हे सुभग! हे रुपमन्मथ! मेरे ही पुण्य से आज आप का यहां आगमन हुआ है। हे सुन्दर! मैं आपकी दासी हूँ।" इतना कह वह कुमार के सामने झुककर उन्हें प्रणाम करने लगी किन्तु वसुदेव ने उसके इस कार्य में बाधा देते हुए कहा—“हे सुन्दरि! मुझे प्रणाम करने की आवश्यकता नहीं। मैं तो किसी का दास हूँ। जो पुरुष तुम्हारे निकट वन्दनीय हो, उसी को तुम्हें प्रणाम करना चाहिए।" ___ कनकवती ने कहा- "हे कुमार! मैं किसी प्रकार की भूल नहीं कर रही हूँ। आपको मैं भली भांति पहचानती हूँ। उस विद्याधर ने मुझे न केवल आपका परिचय ही दिया था, बल्कि आपका एक चित्र भी दिया था। मैं उसी को देखकर अब तक जीवित रही हूँ। अब आप मुझे भ्रम में डालने की चेष्टा न कीजिए। आप ही मेरे जीवनधन हैं, आप ही मेरे प्राणनाथ है।" वसुदेव ने कहा- “हे भद्रे! तुम वास्तव में भूलकर रही हो। विद्याधर ने तुम्हें जिनका परिचय दिया था, उनका नाम कुबेर है। मैं उन्हीं का नौकर हूं और उन्हीं की और से तुम्हारी याचना करने आया हूँ। वे तुमसे विवाह कर अपने को धन्य समझेंगे और तुम्हें अपनी पटरानी बनायेंगे। उस अवस्था में देवियाँ तुम्हारी सेवा करेंगी और तुम्हारी गणना देवियों में होने लगेगी। हे सुन्दर। क्या तुमने कुबेर का नाम नहीं सुना है ? क्या उनके ऐश्वर्य और अतुल धनभण्डार की बात तुम से छिपी हुई है?" कनकवती ने उपेक्षापूर्वक कहा- "हे सुन्दर! मैं कुबेर को जानती हूं। संसार में उन्हें कौन नहीं जानता? मैं उन्हें हाथ जोड़कर हजारों बार प्रणाम . करती हूं किन्तु मेरा और उनका ब्याह कैसा? वे ठहरे इन्द्र के दिक्पाल और मैं ठहरी मानुषी कीटिका! उन्होंने मुझे जो सन्देश भेजा है, वह केवल क्रीड़ा है, उपहास है, साथ ही सर्वथा अनुचित है। मनुष्य और देवताओं का वैवाहिक सम्बन्ध न कभी हुआ है, न भविष्य में ही होना सम्भव है।" वसुदेव ने कहा—“परन्तु हे सुन्दरी! तुम्हें यह भी न भूलना चाहिए कि देवताओं की बात न मानने से दमयन्ती को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा था।"
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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