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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 117 मलीन वस्त्र पहन लिये। उन्हें इस वेश में कनकवती के पास जाते देखकर कुबेर ने कहा-“हे कुमार! आपने उत्तम वेश क्यों त्याग दिया ? संसार में तो सर्वत्र आडम्बर की ही पूजा होती है।" ____ कुमार ने हँसकर कहा- “मलीन व उज्जवल वेश से क्या होता है? वाणी ही दूत का भूषण है और वह तो मेरे पास है ही।" कुबेर ने कहा-“अच्छा जाइए, आप का कल्याण हो।" तदनुसार वसुदेव कुमार राजा हरिश्चन्द्र के राज भवन में जा पहुंचे। वहां पर हाथी, घोड़े, रथ और सुभटादिक के कारण कहीं पैर रखने की भी जगह न थी, परन्तु कुबेर के आशीर्वाद से वे अदृश्य भाव से बिना किसी विघ्न बाधा के इस तरह आगे बढ़ते गये, मानों वहां कोई है ही नहीं। धीरे धीरे वे राजमन्दिर के पहले दरवाजे पर पहुंचे। यहां पर पहरेदारों का कड़ा पहरा था, इसलिए वे इधर उधर झाँक ताक में ही उन्होंने अन्तपुर के प्रथम कमरे में प्रवेश क्रिया वहाँ उन्हें सुन्दर और समान उम्रवाली स्त्रियों का एक दल तथा इन्द्र नीलमणि द्वारा निर्मित एक ऐसा स्थान दिखायी दिया, जिसे देखकर वे आश्चर्य चकित हो गये। इस स्थान से आगे बढ़ने पर वसुदेव राजमन्दिर के दूसरे दरवाजे पर पहुंचे। यहां पर ध्वजदण्ड युक्त सोने का एक ऐसा स्तम्भ था, जिस पर रत्ननिर्मित पुतलियां फुदक रही थी। यहां से आगे बढ़ने पर वसुदेव राजमन्दिर के तीसरे दरवाजे पर पहुंचे। यहां पर दिव्य वस्त्राभूषणों से विभूषित अप्सरा के समान स्त्रियाँ उन्हें दिखायी दी। उनहें देखकर ऐसा ज्ञान होता था, मानों स्थानाभाव से स्वर्ग की सुरसुन्दरियाँ यहां चली आयी हो। यहां से चौथे दरवाजे में पहुँचने पर वसुदेव को ऐसी भूमि दिखायी दी, जिसे देखने से वहां पर जल का भ्रम होता था। वह स्थान तरंगों से चंचल और राजहंस तथा सारसादिक से सेवित मालूम होता था। यहां की दीवालों में इतनी चमक थी, कि ललनाओं को शृंगार करते समय दर्पण की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। यहां पर सुचतुर दासियों का एक दल भी उन्हें दिखायी दिया, जो गायन वादन . तथा नृत्यादिक कलाओं में पूर्णरूप से निपुण था। पाँचवें द्वार की भूमि मरकत मणिमय बनी हुई थी। यहां पर मूंगा और
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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