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श्री नेमिनाथ-चरित * 109 धीरे धीरे यह समाचार राजा जरासन्ध के कानों तक जा पहुंचा। उसने डिम्भ नामक द्वारपाल को राजा जितशत्रु के पास भेजकर वसुदेव को बुला भेजा। डिम्भ सवारी के लिये एक रथ भी लाया था। वसुदेव उसी में बैठ उसके साथ राजगृह नगर में गये। परन्तु वहां पहुंचते ही राजकर्मचारियों ने उन्हें कैद कर लिया इस अकारण दण्ड का कारण पूछने पर उन्होंने बतलाया के एक ज्ञानी ने जरासन्ध से कहा है कि जो नन्दिषेणा को वशीकरण के प्रभाव से मुक्त करेगा, उसी के पुत्र द्वारा जरासन्ध की मृत्यु होगी। इसलिए हम लोगों ने आप को कैद किया है।" . ___ इतना कह वे लोग वसुदेव को वधस्थान में ले गये। वहां पर वधिक पहले से ही तैयार बैठे थे। ज्योंही वे उन्हें मारने को उठे त्योंही भगीरथी नामक एक धात्री वहां आयी और वंसुदेव को उनके हाथों से छीनकर आकाशमार्ग द्वारा उन्हें गन्ध समृद्धपुर नामक नगर में उठा ले गयी। बात यह हुई कि वहां के राजा गन्धारपिङ्गल के प्रभावती नामक एक कन्या थी। किसी ज्ञानी से पूछने पर उसे मालूम हुआ कि उसका विवाह वसुदेव के साथ होगा। इसीलिए उन्होंने भगीरथी को उन्हें ले आने के लिये भेजा था। वह ठीक उसी समय राजगृह में पहुँची, जिस समय वधिक गणं वसुदेव को मारने की तैयार कर रहे थे। वसुदेव को उनके हाथों से छीन लेने पर वे सब अवाक् बन गये और अपना सा मुंह लेकर अपने अपने घर चले गये। उधर गन्धारपिङगल ने वसुदेव के साथ प्रभावती का विवाह कर दिया, इसलिए वे वहीं सुखपूर्वक दिन बिताने लगे।
इस प्रकार अनेक विद्याधर और भूचर राजाओं की कन्याओं से विवाह कर वसुदेव सुकोशला नगर में जाकर सुकोशला कन्या से विवाह कर अब सुकोशला के घर में रहने लगे और वहीं पर आनन्दपूर्वक अपना समय व्यतीत करने लगे।
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