________________
108 * कंस का जन्म को तैयार हुआ। उसका यह अन्याय देखकर वेगवती की माता अंगारवती ने वसुदेव को एक दिव्य धनुष और दो भाले दिये, साथ ही प्रभावती ने उन्हें प्रज्ञप्ति विद्या दी। इस प्रकार विद्या और दिव्य शस्त्रों को पाकर वसुदेव परम
आनन्दित हो उठे और उन्होंने थोड़ी ही देर में अपने शत्रुओं को पराजित कर दिया। मानसवेग को जीता ही बांधकर वे सोमश्री के पास ले आये। वहां पर उसकी माता अंगारवती ने दयाकर उसे छुड़ा दिया। मानसवेग तथा उसके संगी साथियों ने अब दीनतापूर्वक उनकी दासता स्वीकार कर ली पश्चात् वसुदेव सोमश्री के साथ विमान में बैठकर वहां से महापुर चले आये और वहां पर आनन्दपूर्वक अपने दिन व्यतीत करने लगे।
... इस प्रकार मानसवेग के दांत तो खट्टे हो गये, किन्तु कपटी सूर्पक का हौंसला अभी पस्त न हुआ था। वह एक दिन चुपचाप महापुर में आया और अश्व का रूप धारणकर वसुदेव कुमार को उठा ले चला। वसुदेव को यह बात मालूम होते ही उन्होंने उस के शिरपर एक ऐसा मुक्का मारा कि उसने तुरन्त उन्हें छोड़ दिया। इससे वसुदेव गंगा नदी की धारा में जा गिरे। किसी तरह वहां से निकलकर वे एक तपस्वी के आश्रम में जा पहुंचे। वहां पर एक कन्या खड़ी थी, जिसके गले में हड्डियों को माला पड़ी हुई थी। उसे देख, वसुदेव ने तपस्वी से पूछा-“महाराज! यह कन्या किसकी है। और यह ऐसी अवस्था में क्यों खड़ी है।"
तपस्वी ने कहा-“हे कुमार! यह राजा जितशत्रु की पत्नी और जरासन्ध की नन्दिषेणा नामक पुत्री है। इसे एक परिव्राजक ने वश में कर लिया था, इसलिये राजा ने उसे मरवा डाला। किन्तु उसके वशीकरण का प्रभाव इस पर इतना अधिक पड़ा कि यह अब तक उसकी हड्डियाँ धारण किये रहती है।"
यह सुनकर वसुदेव ने अपने मन्त्रबल से उसके वशीकरण का प्रभाव नष्ट कर दिया। इससे वह फिर अपने पति राजा जितशत्रु के पास चली गयी। राजा जितशत्रु ने इस उपकार के बदले में वसुदेव के साथ अपनी केतुमती नामक बहिन का विवाह कर दिया। वसुदेव वहीं ठहर गये और उसका आतिथ्य ग्रहण करने लगे।