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106 * कंस का जन्म
ब्याह कर लेना। अब तुम अपनी इच्छानुसार मुझ से भी एक वर मांग सकते
हो।"
देवी के यह वचन सुनकर वसुदेव ने कहा—“माताजी! अच्छी बात है, मैं अब आपके आदेशानुसार ही कार्य करूंगा और प्रियंगुमंजरी के ब्याह भी कर लूंगा। रह गयी वरदान की बात, सो मैं आपसे यही वर मांगता हूं कि मैं आपको जब और जहां स्मरण करूं, वहीं पर आप मेरी सहायता करें। बस, इतना ही मेरे लिये काफी है।
देवी ने कहा-“तथास्तु।” इसके बाद वह कुमार को बन्धुमति के घर पहुँचा कर अपने वासस्थान को चली गयी। दूसरे दिन वह द्वारपाल फिर वसुदेव को बुलाने आया। आज वसुदेव ने उसके साथ जाने में कोई आपत्ति न की। इधर प्रियंगुमंजरी अपने मन्दिर में बैठी हुई पहले ही से उनकी बाट जोह रही थी। इसलिए वसुदेव ने आते ही उसकी इच्छानुसार उसके साथ गन्धर्व विवाह कर लिया। अठाहरवे दिन उसी द्वारपाल ने राजा को इस विवाह का समाचार दिया। साथ ही उसने कहा कि यह सब कार्य देवी के ही आदेश और संकेत से हुए हैं। यह सुनकर राजा परम प्रसन्न हुए और वसुदेव का समुचित आतिथ्य करने के लिये उन्हें सम्मान पूर्वक अपने घर ले गये।
___ उधर वैताढय पर्वत पर गन्ध समृद्धि. नामक एक नगर था। वहां पर गंधार पिङ्गल नामक एक राजा राज्य करते थे। उनके प्रभावती नामक एक पुत्री थी। वह एक बार घूमती घूमती सुवर्णाभपुर नगर में जा पहुँची। वहां पर सोमश्री से भेंट होने पर वह उसकी सखी बन गयी। कुछ दिनों के बाद प्रभावती को मालूम हुआ कि सोमश्री पतिविरह से सदा दुःखित रहती है। इसलिए उसने उससे कहा-“हे सखी! तुम खेद मत करो। मैं जैसे भी होगा, तुम्हारे पति को तुम्हारे पास ले आऊंगी।"
सोमश्री निश्वास छोड़ते हुए बोली—“जैसे वेगवती लेकर आयी वैसे तूं भी अदृश्य सौभाग्यवाले पति को ले आयगी।"
प्रभावती ने मुस्कुराकर कहा—“विश्वास रक्खें, मैं वेगवती की तरह तुम्हें धोखा न दूंगी।"