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श्री नेमिनाथ-चरित * 103 नगर में अनंगसेना नामक एक वेश्या और कामपताका नामक उसकी एक पुत्री भी रहती थी। एक बार राजा ने यज्ञ किया। उसमें अनेक तापसों को निमन्त्रित किया था, जिनमें कौशिक और तृण बिन्दु नामक दो उपाध्याय भी थे। उन दोनों ने राजा को कुछ फल दिये। उन फलों को देखकर राजा ने पूछा-“यह सुन्दर फल आप कहां से लाये है ?" ___इस प्रश्न के उत्तर में उपाध्यायों ने हरिवंश की उत्पत्ति से लेकर कल्पवृक्ष ले आने तक की कंथा उन्हें कह सुनायी। उसी समय कामपताका को छूरी पर नृत्य करते देखकर कुमार चारुचन्द्र और कौशिक मुनि उस पर मुग्ध हो गये। यज्ञ समाप्त होने पर एक और तो चारुचन्द्र ने उसे अधिकार में कर लिया, दूसरी और कौशिक मुनि ने राजा से उसकी याचना की। राजा ने कहा—“हे मुनिराज! कुमार ने उसे स्वीकार कर लिया है। साथ ही वह श्राविका धर्म पालन करती है, इसलिये एक पति को स्वीकार करने के बाद वह अब दूसरा , पति स्वीकार न करेगी।"
राजा का यह उत्तर सुनकर कौशिक मुनि क्रुद्ध हो उठे। उन्होंने चारुचन्द्र को शाप देते हुए कहा-“हे चारुचन्द्र! तूं इस रमणी से ज्यों ही भोग करेगा, त्योंही तेरी मृत्यु हो जायगी।" ...
इस घटना के कुछ ही दिन बाद राजा अपना समूचा राज्य चारुचन्द्र को देकर जंगल में चले गये और वहां पर एक तापस की भाँति जीवन व्यतीत करने लगे। उनकी रानी उस समय गर्भवती थी किन्तु यह बात राजा को मालूम न थी। एक दिन जब रानी अपने पति के साथ उपवन में गयी तब वहां पर उसने राजा से अपने गर्भ की बात कह सुनाई। तदनन्तर गर्भकाल पूर्ण होने पर . उसने एक पुत्री को जन्म दिया और उसका नाम ऋषिदत्ता रक्खा।
ऋषिदत्ता जब बड़ी हुई, तब वह चारण श्रमण के पास श्राविका बन गयी। धीरे धीरे वह युवती हुई, किन्तु उसे किसी का सहारा न रहा। क्योंकि उसकी माता और धाय पहले ही मर चुकी थी। एक दिन राजा शिलायुध शिकार की खोज में वहां पर आ पहुँचे। उस समय ऋषिदत्ता का रूप देखकर वे उस पर मुग्ध हो गये। ऋषिदत्ता ने अतिथि समझकर उनका स्वागत सत्कार किया किन्तु उनका ध्यान तो दूसरी ओर ही था, अत: उन्होंने उसे एकान्त में