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________________ 100 * कंस का जन्म वहां आने पर वसदेव ने दो राजाओं को देखा, जिन्होंने उसी समय व्रत ग्रहण किया था और जो अपने पौरुष की निन्दा कर रहे थे। उनसे उद्वेग का कारण पूछने पर उन्होंने वसुदेव से कहा श्रावस्ती नगरी में एणीपुत्र नामक एक राजा है, जो बहुत ही पवित्रात्मा है। उसने अपनी पुत्री प्रियंगुमञ्जरी के स्वयंवर के लिए अनेक राजाओं को निमन्त्रित किया था, परन्तु उसकी पुत्री ने उनमें से किसी को भी पसन्द न किया। इससे उन राजाओं ने रुष्ट होकर युद्ध करना आरम्भ किया परन्तु प्रियंगुमंजरी के पिता एणीपुत्र ने अकेले ही सबको पराजित कर दिया। उनके भय से न जाने कितने राजा भाग गये, न जाने कितने पर्वतों में जा छिपे ओर न जाने कितने जल में समा गये। हम दोनों भी वहां से भागकर यहां चले आये और अपना प्राण बचाने के लिए हमने यह तापस वेश धारण कर लिया है। हे महापुरुष! हमें अपनी इस कायरता के लिए बड़ा ही अफसोस ही रहा है।" यह सुनकर वसुदेव ने पहले तो उन्हें सान्त्वना दी और बाद में जब वे शान्त हुए तब उन्हें जैन धर्म का. उपेंदश दिया। इससे उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा ले ली। इसके बाद वसुदेव श्रावस्ती नगर में गये। वहां पर एक उद्यान में उन्होंने एक ऐसा देवमन्दिर देखा, जिसके तीन दरवाजे थे, मुख्य द्वार में बत्तीस ताले थे, इसलिये वे दूसरे द्वार से प्रवेश कर उसके अन्दर पहुंचे। वहां पर देवगृह में उन्होंने तीन मूर्तियां देखी, जिनमें से.एक किसी ऋषि की, एक किसी गृहस्थ की और एक तीन पैर के भैंसे की थी। इन मूर्तियों को देखकर उन्होंने एक ब्राह्मण से इसके सम्बन्ध में पूछताछ की। उसने कहा यहां पर जितशत्रु नामक एक राजा थे, जिनके मृगध्वज नामक एक पुत्र था। उन्हीं के जमाने में यहां पर कामदेव नामक एक वणिक भी रहता था। वह एक बार अपनी पशुशाला में गया। वहां पर दण्डक नामक गोपाल ने एक भैंस को दिखलाते हुए उससे कहा-“अब तक इस भैंस के पांच बच्चों को मैं मार चुका हूं। यह इसका छठा बच्चा है। यह देखने में बहुत ही मनोहर है। यह जन्मते ही भय से कांपने लगा और दीनतापूर्वक मेरे पैरों पर गिर पड़ा। इससे मुझे इस पर दया आ गयी और मैंने इसे जीता छोड़ दिया। अब आप भी इसे अभयदान दीजिए। मालूम होता है कि यह कोई जातिस्मरण ज्ञान वाला जीव है।"
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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