SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 95 कहा-“हमारे वंश के मूल पुरुष नमि थे। उनके पुत्र पुलस्त्य और पुलस्त्य के वंश में मेघनाद उत्पन्न हुए। मेघनाद पर प्रसन्न हो सुभुम चक्रवर्ती ने उन्हें दो श्रेणियां और ब्राह्म तथा आग्नेयादिक शस्त्र प्रदान किये थे। इसी वंश में रावण और विभीषण भी उत्पन्न हुए। मेरे पिता विद्युद्वेग विभीषण के ही वंशज है। इसलिए ये सब शस्त्र उसी समय से हम लोग अपने काम में लाते चले आ रहे हैं। अब मैं इन्हें आपको अर्पण करता हूं। आशा है ये आपको बड़े काम देंगे। हमारे जैसे मन्द भाग्यों के लिए ये बेकार हैं। वसुदेव ने वे सब शस्त्र सहर्ष स्वीकार कर लिये। किन्तु सिद्ध किये बिना वे सब व्यर्थ थे, इसलिए वसुदेव ने साधना कर शीघ्र ही उन्हें सिद्ध कर लिया। ___उधर त्रिशिखर को ज्योंही यह मालूम हुआ, कि मदनवेगा का विवाह एक भूचर (मनुष्य) से कर दिया गया है, त्योंही वह आग बबूला हो अमृतधारा नगर पर आक्रमण करने के लिए आ धमका। उधर वसुदेव तो उससे युद्ध करने के लिए पहले से ही तैयार थे, इसलिए तुण्ड विद्याधर के दिये हुए मायामय सुवर्ण रथ पर बैठ, दधिमुख़ादिक के साथ ले, वे उसके सामने जा डटे और वीरता पूर्वक उससे युद्ध करने लगे। थोड़ी ही देर में उन्होंने इन्द्रास्त्र द्वारा उसका शिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद दिवस्तिलक नगर में जाकर उन्होंने अपने श्वसुर को बन्धन मुक्त किया। वहां पर और भी कई दिनों तक उनहोंने निवास किया। इस बीच मदनवेगा ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम अनाधृष्टि रक्खा गया। ____ वसुदेव के रूप और गुणों पर समस्त विद्याधर और विद्याधरियाँ मुग्ध रहा करती थी। वे जिधर निकलते लोगों की आंखे उन पर गड़ जाया करती थी। एक बार उन्होंने सिद्धायतन की यात्रा की, वहां से वापस आने पर उन्होंने एक दिन मदनवेगा को अपने पास बुलाया, किन्तु भूल से मदनवेगा के बदले उनके मुख से कहीं वेगवती का नाम निकल गया इससे मदनवेगा रुष्ट होकर अपने शयनागार में चली गयी, क्योंकि स्त्रियां स्वभाव से ही सौत का नाम : सुनना पसन्द नहीं करती। खैर, वसुदेन ने इस पर कोई ध्यान भी न दिया। परन्तु त्रिशिखर की पत्नी सुर्पणखा वसुदेव से अपने पति का बदला
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy