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________________ 94* कंस का जन्म कुछ देना ही चाहते हो तो, मुझे आकाश गामिनी विद्या दो। उसकी मुझे बड़ी जरूरत है। विद्याधर “तथास्तु' कह, अपने वासस्थान को चला गया। पश्चात् वसुदेव कनखलपुर के द्वार के निकट साधना कर उस विद्या को सिद्ध करने लगे। उसी समय कहीं से राजा विद्युद्वेग की मदनवेगा नामक पुत्री वहां पर आ पहुंची। वह वसुदेव को देखते ही उन पर अनुरक्त हो गयी और उन्हें वैताढय पर्वत पर उठा ले गयी। वहां पर उन्हें पुष्पायन नामक उद्यान में छोड़कर स्वयं अमृतधारा नामक नगर में चली गयी। दूसरे दिन, सुबह दधिवेग, दण्डवेग और चण्डवेग (जिस ने वसुदेव को आकाशगमिनी विद्या दी थी) नामक उसके तीनों भाई वसुदेव के पास आये और उन्हें सम्मान पूर्वक अपने नगर में ले जाकर मदनवेगा के साथ उनका विवाह कर दिया। इसके बाद वसुदेव बहुत दिनों तक उसके साथ मौज करते रहे। इसी बीच में वसुदेव को प्रसन्न कर मदनवेगा ने एक वर मांगा जो उन्होंने उसे देना स्वीकार कर लिया। ____एक दिन दधिमुख ने वसुदेव के पास आकर कहा—दिवस्तिलक नामक नगर में त्रिशिखर नामक राजा राज्य करता है। उसके सुर्पक नामक एक पुत्र है। उसके साथ व्याह करने के लिये उसने हमारे पिता के निकट मदनवेगा की मंगनी की, परन्तु हमारे पिताजी ने इसके लिए इन्कार कर दिया। ऐसा करने का कारण यह था कि मदनवेगा के ब्याह के सम्बन्ध में एक चारणमुनि ने पिताजी को बतलाया था कि मदनवेगा का विवाह हरिवंशोत्पन्न वसुदेव कुमार के साथ होगा। वे विद्या की साधना करते हुए चण्डवेग के कन्धे पर रात्रि के समय गिरेंगे और उनके गिरते ही चण्डवेग की विद्या सिद्ध हो जायगी। इसलिए पिताजी ने त्रिशिखर राजा के पुत्र सुर्पक से मेरी मंगनी की बात स्वीकार नहीं की। किन्तु इससे त्रिशिखर राजा रुष्ट हो गया और हमारे नगर पर आक्रमण कर हमारे पिताजी को कैद कर ले गया है। अतएव निवेदन है, कि आप ने हमारी बहिन मदनवेगा को जो वर देना स्वीकार किया है। उसके अनुसार आप हमारे पिताजी को छुड़ाने में सहायता कीजिए इससे हम लोग सदा के लिए आप के ऋणी बने रहेंगे। इतना कह, दधिमुख ने कई दिव्य शस्त्र वसुदेव के सामने रखते हुए
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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