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११. श्री श्रेयांसनाथ चरित्र
भवरोगार्त्तजन्तूनामगदङ्गकारदर्शनः । निःश्रेयसश्रीरमणः श्रेयांसः श्रेयसेऽस्तु वः ॥
भावार्थ - जिनका दर्शन ( सम्यक्त्व) संसार रूपी रोग से पीड़ित जीवों के लिए वैद्य के समान है और जो मोक्षरूपी लक्ष्मी के स्वामी है। वे श्रीश्रेयांसनाथ भगवान तुम्हारे कल्याण के हेतु होवें । *
प्रथम भव :
पुष्करवरद्वीप में कच्छ विजय है। उसमें क्षेमा नाम की एक नगरी है। वहां का राजा नलिनगुल्म था। उसने बहुत दिनों तक राज्य किया। एक समय संसार से उसको वैराग्य हुआ । उसने वज्रदंत मुनि के पास दीक्षा ली और वीस स्थानक की आराधना कर तीर्थंकर गोत्र बांधा।
दूसरा भव :
प्राण तजकर नलिनगुल्म शुक्र नामक दशवें देवलोक में उत्पन्न
हुआ।
तीसरा भव :
वहां से च्यवकर सिंहपुरी नगर के राजा विष्णु की रानी के उदर में चौदह स्वप्न सूचित जेठ वदि ६ के दिन श्रवण नक्षत्र में आया। इंद्रादि देवों च्यवनकल्याणक मनाया।
गर्भकाल पूरा होने पर विष्णु माता की कुक्षि से फाल्गुन वदि १२ के दिन श्रवण नक्षत्र में गेंडे के चिह्न सहित पुत्ररत्न का जन्म हुआ। छप्पन दिक्कुमारी एवं इन्द्रादि देवों ने जन्मकल्याणक मनाया । पुत्र का नाम श्रेयांस कुमार रखा गया। क्योंकि उनके जन्म से राजा के घर सब श्रेय (कल्याण) हुआ था।
: श्री श्रेयांसनाथ चरित्र : 86 :