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________________ अनुक्रम से प्रभु युवा हुए। तब मात-पिता ने अत्याग्रहकर अनेक राजकन्याओं के साथ उनका पाणिग्रहण करा दिया। वे २१ लाख वर्ष तक युवराज रहे और ४२ लाख वर्ष तक उन्होंने राज्य किया। जब लोकांतिक देवों ने आकर दीक्षा लेने की विनती की, तब प्रभु ने वर्षीदान दिया और सहसाम्र वन में जाकर फाल्गुन वदि १३ के दिन श्रवण नक्षत्र में छट्ट तप कर दीक्षा ली। इंद्रादि देवों ने दीक्षाकल्याणक किया। दूसरे दिन उन्होंने राजा नंद के यहां पर पारणा किया। वहां से अन्यत्र विहार कर एक मास बाद वापिस वे उसी वन में आये। अशोक वृक्ष के नीचे कार्योत्सर्ग धार शुक्लध्यान के साथ कर्मों का नाश कर माघ वदि अमावस्या के दिन चंद्र नक्षत्र में प्रभु केवली हुए। इंद्रादि देवों ने केवलज्ञान-कल्याणक किया। श्रेयांसनाथजी के परिवार में इश्वर1 नाम का यक्ष और मानवी 2 नाम की शासन देवी हुई। इसी तरह ७६ गणधर, ८४ हजार साधु, १ लाख ३ हजार साध्वियां, १३०० चौदह पूर्वधारी, ६ हजार अवधिज्ञानी, ६ हजार मनःपर्यवज्ञानी, साढ़े छः हजार केवली, ११ हजार वैक्रिय लब्धिधारी, ५ हजार वादलब्धिधारी, २ लाख ७६ हजार श्रावक और ४ लाख ४८ हजार श्राविकाएँ थी। प्रभु अपना मोक्षकाल समीप जान सम्मेदशिखर पर गये। एक हजार मुनियों के साथ उन्होंने अनशन व्रत लिया और एक मास के अंत में श्रावण वदि ३ के दिन घनिष्ठा नक्षत्र में प्रभु मोक्ष गये। इंद्रादि देवों ने मोक्षकल्याण का उत्सव किया। श्रेयांसनाथ की आयु ८४ लाख वर्ष की थी, उसमें से वे २१ लाख वर्ष कुमार वय में रहे, ४२ लाख वर्ष राज्य में रहे और २१ लाख वर्ष उन्होंने चारित्र पाला। इनका शरीर ८० धनुष ऊंचा था। शीतलनाथजी के निर्वाण के बाद ६६ लाख ३६ हजार वर्ष १०० सोगरोपम न्यून एक कोटि सागरोपम बाद श्रेयांसनाथजी मोक्ष गये। इनके तीर्थ में त्रिपृष्ट वासुदेव, अचल नामक बलदेव और अवग्रीव प्रति वासुदेव हुए। 1. इसका दूसरा नाम 'मनुज' भी है। 2. इसका दूसरा नाम 'श्रीवत्सा' भी है। : श्री तीर्थंकर चरित्र : 87 : .
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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