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________________ १. श्री अजितनाथ चरित्र | अर्हन्तमजितं विश्व-कमलाकरभास्करम् । . अम्लानकेवलादर्श-सङ्क्रान्तजगतं स्तुवे ॥ भावार्थ - संसार रूपी कमलसरोवर को प्रकाशित करने में सूर्य के समान और जगत को अपने निर्मल केवल ज्ञान द्वारा जानने में दर्पण के समान श्री अजितनाथ स्वामी की मैं स्तुति करता हूं। प्रथम भव : समस्त द्वीपों के मध्य में नाभि के समान जंबूद्वीप है। उसमें महाविदेह क्षेत्र है। इस क्षेत्र में हमेशा 'दुखमा सुखमा' नामक चौथा आरा वर्तता है। इसी क्षेत्र में सीता नामक एक बड़ी नदी थी। उसके दक्षिण तटपर वत्स नाम का देश था। वह बहुत समृद्धिशाली था। उसमें सुसीमा नामकी नगरी थी। उसकी सुंदरता को देखकर देखनेवाले स्वर्ग की कल्पना करने लगते थे। कई कहते थे पातालस्थ असुर देवों की यह भोगवती नगरी है। कई कहते थे यह देवताओं की अमरावती है जो स्वर्ग से यहां उतर आयी है और कई कहते थे यह तो उन दोनों की छोटी बहन है। पाताल और स्वर्ग में उन्होंने अधिकार किया है। इसने मनुष्य लोक में अपना स्थान बनाया है। इसी नगर में विमलवाहन नाम का राजा राज्य करता था। वह प्रजा को संतान की तरह पालता था, पोषता था और उन्नत बनाता था। न्याय तो उसके जीवन का प्रदीप था। ओर तो ओर वह निजकृत अन्याय भी कभी नहीं सहता था। उसके लिए दंड लेता था, प्रायश्चित्त करता था। प्रजा के लिए वह सदा अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर रहता था। प्रजा भी उसको प्राणों से ज्यादा प्यार करती थी। जहां उसका पसीना गिरता वहां 1. देखो तीर्थंकर चरितभूमिका, पेज ३०१ : श्री अजितनाथ चरित्र : 42 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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