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________________ भरत चक्रवर्ती अनशन के समाचार सुनकर व्याकुल हुए और अपने परिवार सहित अष्टापद पर पहुंचे। ध्यानस्थ प्रभु को नमस्कार कर उनके सामने बैठ गये। चौसठ इंद्रों के भी आसन कंपे। उन्होंने प्रभु का निर्वाण समय जाना। वे प्रभु के पास आये और प्रदक्षिणा देकर पाषाणमूर्ति की भांति स्थिर होकर सामने बैठ गये। ___ इस अवसर्पिणीकाल के तीसरे आरे के जब नैव्याशी पक्ष (तीन बरस साढे आठ महिने) रहे तब माघकृष्णा त्रयोदशी के सर्वरे, अमिचि नक्षत्र में, चंद्र का योग आया था उस समय पंर्यकासनस्थ प्रभु ने बादर काययोग में रहकर बादर वचन-योग और बादर मनोयोग को रोका; फिर सूक्ष्म काययोग का आश्रय ले, बादर काययोग, सूक्ष्म मनोयोग तथा सूक्ष्म वचनयोग को रोका। अंत में वे सूक्ष्म काययोग का भी त्यागकर और सूक्ष्म क्रिया' नामक शुक्ल ध्यान के तीसरे पाये के अंत को प्राप्त हए। तत्पश्चात उन्होंने 'उछिन्नक्रिया' नामके शुक्लध्यान के चौथे पाये का जिसका काल केवल पांच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारण जितना ही है आश्रय किया। अंत में केवलज्ञानी, केवलदर्शनी, सर्व दुःखविहीन, आठों कर्मों का नाश कर सारे अर्थों को सिद्ध करने वाले अनंत वीर्य, अनंत सुख और अनंत ऋद्धिवाले, प्रभु बंध के अभाव से एरंड फल के बीज की तरह उध्र्व गतिवाले होकर स्वभावतः सरल मार्ग द्वारा लोकाग्र को (मोक्ष को) प्राप्त हुए। प्रभु के निर्वाण से सुख की छाया का भी कभी दर्शन नहीं करनेवाले-नारकी जीवों को भी क्षण वार (अन्तर्मुहूर्त) के लिए सुख हुआ। दस हजार श्रमणों (साधुओं) को भी, अनशन व्रत लेने के और क्षपकश्रेणी में आरूढ़ होने के बाद केवलज्ञान प्राप्त हुआ। फिर मन, वचन और काय के योग को सर्व प्रकार से रुद्धकर वे भी ऋषभदेव स्वामी की भांति ही परम पद को प्राप्त हुए। चक्रवर्ती भरत वज्राहत की भांति इस घटना से मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। इंद्र उनके पास बैठकर रूदन करने लगा। देवताओं ने भी इंद्र : श्री आदिनाथ चरित्र : 40 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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