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'मेरा यह
तैयार कराता हूं। आप उन्हें धारण कीजिए।' कोई कहने लगा घोड़ा सूर्य के घोड़े को भी परास्त करनेवाला है, आप इसको ग्रहण कीजिए।' कोई बोला- 'आप क्या हम गरीबों की कुछ भी भेट न स्वीकारेंगे?' आदि । मगर प्रभु ने तो किसी को भी कोई उत्तर नहीं दिया। प्रभु आहार के लिए घर-घर जाते थे और कहीं शुद्ध आहार न मिलने से लौट आते थे।
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इधर श्रेयांसकुमार को उस रात मलिन बने मेरुपर्वत को स्वच्छ करने का, सोमप्रभ राजा को दुश्मन से घिरे मानव को श्रेयांसकुमार द्वारा विनयी बनाने का, सुबुद्धि सेठ को सूर्य की हजार किरणें गिरती हुई को श्रेयांसकुमार ने पुनः स्थापित करने का स्वप्न आया। तीनों ने राजसभा से आज श्रेयांसकुमार को अनुपम लाभ की बात कही ।
शहर में प्रभु के आने की धूम मच गयी। सोमप्रभ राजा के पुत्र श्रेयांस कुमार ने भी प्रभु के आगमन के समाचार सुने। यह अपने प्रपितामह के आगमन समाचार सुनकर हर्ष से पागल बना हुआ नंगे पैर अकेला ही प्रभु. के दर्शनार्थ दौड़ा। उसे जाकर प्रभु के चरणों में नमस्कार किया। फिर वह खड़ा होकर उस मूर्ति को देखने लगा। देखते ही देखते उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसने अपने पूर्वभव देखें। उसके द्वारा उसे मालूम हुआ कि, साधुओं को शुद्ध आहार कैसे देना चाहिए। उसी समय प्रजाजनों में से कइयों ने गन्ने के रस से भरे हुए घड़े लाकर श्रेयांस कुमार को भेट किये। कुमार ने उन्हें विधि पूर्वक वंदन कर ईक्षु रस को शुद्ध समझकर प्रभु को स्वीकार करने की प्रार्थना की। प्रभु ने शुद्ध आहार समझ अंजलि जोड़ हस्तरूपी पात्र आगे लिया। उस पात्र में यद्यपि बहुतसा रस समा गया; परंतु कुमार के हृदयरूपी पात्र में हर्ष न समाया। प्रभु ने उस रस से पारणा किया। सुर, नरों ने और असुरों ने प्रभु के दर्शन रूपी अमृत से पारणा किया। मनुष्यों ने आनंदाश्रु बहाये। आकाश में देवताओं ने दुंदुभि - नाद किया और रत्नों की, पंचवर्ण के पुष्पों की, गंधोदक की और दिव्य वस्त्रों की वृष्टि की। वैशाख
1. तीर्थंकरों का जब पारणा होता है तभी ये पंच दिव्य होते हैं। यानी दुंदुभि बजती है और देवता रत्न, पांच प्रकार के पुष्प, सुगंधित जल और उज्ज्वल वस्त्रों की वृष्टि करते है।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 29 :