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________________ १२. उनके शासन का या किसी दूसरे के शासन का लोगों को भय नहीं रहता है। १३. उनके वचन' ऐसे होते हैं कि, जिन्हें देवता, मनुष्य और तिर्यंच सब अपनी-अपनी भाषा में समझ लेते हैं। १४. एक योजन तक उनके वचन समानरूप से सुनायी देते हैं। १५. सूर्य की अपेक्षा बारह गुना अधिक उनके भामंडल का तेज होता है। १६. आकाश में धर्मचक्र होता है। १७. चार जोड़ी (आठ) चँवर बगैर दुलाये ढुलते हैं। १८. पादपीठ सहित स्फटिक रत्न का उज्ज्वल सिंहासन होता है। १६. प्रत्येक दिशा में तीन-तीन छत्र होते हैं। . . २०. रत्नमय धर्मध्वज होता है। इसको इन्द्र-ध्वजा भी कहते हैं। . २१. नौ स्वर्ण कमल पर चलते हैं (दो पर पैर रखते हैं, सात पीछे, रहते हैं, जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते हैं वैसे ही वैसे देवता पिछले कमल उठाकर आगे रखते जाते हैं।) 1. वचन ३५ गुणवाले होते हैं। १. सब जगह समझे जा सकते हैं। २. एक योजन तक वे सुनायी देते हैं। ३. प्रौढ ४. मेघ के समान गंभीर ५. सुस्पष्ट शब्दों में ६. संतोषकारक ७. हर एक सुननेवाला समझता है कि वे वचन मुझ को कहे जाते हैं। ८. गूढ आशयवाले ९. पूर्वापर विरोध रहित। १०. महापुरुषों के योग्य, ११. संदेह-विहीन १२. दूषण रहित अर्थ वाले। १३. कठिन विषय को सरलता से समझाने वाले। १४. जहाँ जैसे शोभे वहाँ वैसे बोले जा सकें। १५. षड् द्रव्य और नौ तत्त्वों को पुष्ट करनेवाले। १६. हेतु पूर्णी. १७. पद रचना सहित। १८. छः द्रव्य और नौ तत्त्वों की पटुता सहित। १९. मधुर। २०. दूसरे का मर्म समझ में न आवें ऐसी चतुराईवाले। २१. धर्म, अर्थ प्रतिबद्ध। २२. दीपक के समान प्रकाश-अर्थ सहित। २३. परनिंदा और स्वप्रशंसा रहित। २४. कर्ता, कर्म, क्रिया, काल और विभक्ति सहित। २५.. आश्चर्यकारी। २६. उनको सुननेवाला समझे कि वक्ता सर्व गुण संपन्न है। २७. धैर्यवाले। २८. विलम्ब रहित। २९. भ्रांति रहित। ३०. प्रत्येक अपनी भाषा में समझ सकें ऐसे। ३१. शिष्ट बुद्धि उत्पन्न करने वाले। ३२. पदों का अर्थ अनेक तरह से विशेष रुप से बोले जायँ ऐसे। ३३. साहसपूरण। ३४. पुनरुक्ति-दोष-रहित और ३५. सुननेवाले को दुःख न हो वैसे। ': अतिशय : 324 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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