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________________ १३. नागकुमार निकाय के धरण नामक इन्द्र, अपने नागकुमार देवताओं सहित आता है। एवं १४. भूतानंद नामका नागेन्द्र, अपने देवताओं सहित आता है। १५-१६. विद्यत्कुमार देवलोक के इन्द्र हरि और हरिसह आते हैं। १७-१८. सुवर्णकुमार देवलोक के इन्द्र वेणुदेव और वेणुदारी आते हैं। १६-२०. अग्निकुमार देवलोक के इन्द्र अग्निशिख और अग्निमाणव आते २१-२२. वायुकुमार देवलोक के इन्द्र वेलम्ब और प्रभंजन आते हैं। २३-२४. स्तनित्कुमार के इन्द्र सुघोष और महाघोष आते हैं। २५-२६. उदधिकुमार के इन्द्र जलकांत और जलप्रम आते हैं। २७-२८. द्वीपकुमार के इन्द्र पूर्ण और अविष्ट आते हैं। २६-३०. दिक्कुमार के इन्द्रं अमित और अमितवाहन आते हैं। सभी अपने देवताओं के साथ आते हैं। (व्यंतर योनि के देवेन्द्र १६) :३१-३२. पिशाचों के इन्द्र काल और महाकाल; ३३-३४. . भूतों के इन्द्र सुरूप और प्रतिरूप; ३५-३६. यक्षों के इन्द्र पूर्णभद्र और मणिभद्र; ३७-३८. राक्षसों के इन्द्र भीम और महाभीम; ३६-४०. किन्नरों के इन्द्र किन्नर और किंपुरुष ४१-४२. किंपुरुषों के इन्द्र सत्पुरुष और महापुरुष ४३-४४. महोरगों के इन्द्र अतिकाय और महाकाय; ४५-४६. गांधर्षों के इन्द्र गीतरति-गतियशः (वाण. व्यंतरों की दूसरी आठ निकाय के इन्द्र १६) :४७-४८. अप्रज्ञाप्ति के इन्द्र संनिहित और समानक; ४६-५०. पंचप्रज्ञाप्ति के इन्द्र धाता और विधाता; ५१-५२. ऋषिवादितना के इन्द्र ऋषि और ऋषिपालक; ५३-५४. भूतवादितना के इन्द्र ईश्वर और महेश्वर; ५५-५६. कंदितना के इन्द्र सुवत्सक और विलाशक; : श्री तीर्थंकर चरित्र : 315 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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