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नामि कुलकर के पास ले गये। नाभि कुलकर ने उन लोगों के अनुरोध से बालिका को यह कहकर रख लिया कि यह ऋषभ की पत्नी होगी।
प्रभु सुमंगला और सुनंदा के साथ बालक्रीडा करते हुए यौवन को प्राप्त हुए। .
एक बार सौधर्मेन्द्र प्रभु का विवाह-समय जानकर प्रभु के पास आया और विनयपूर्वक बोला-प्रभो! यद्यपि मैं जानता हूं कि, आप गर्भवास से ही वीतराग हैं, आपको अन्य पुरुषार्थों की आवश्यकता नहीं है इससे चौथे पुरुषार्थ मोक्ष का साधन करने के लिए आप तत्पर हैं; तथापि मोक्षमार्ग की तरह व्यवहार मार्ग भी आप ही से प्रकट होनेवाला है। इसलिए लोकव्यवहार को चलाने के लिए मैं आपका विवाहोत्सव करना चाहता हूं। हे स्वामी, आप प्रसन्न होइए और त्रिभुवन में अद्वितीय रूपवाली सुमंगला और सुनंदा का पाणिग्रहण कीजिए। . . - प्रभु ने अवधिज्ञान से उस समय, यह देखकर कि मुझे अभी तिरयासी लाख पूर्व तक भोगोपभोग भोगने ही पडेंगे, सिर हिला दिया। इंद्र ने प्रभु का अभिप्राय समझकर विवाह की तैयारियाँ की। बड़ी धूमधाम के साथ सुनंदा और सुमंगला के साथ भगवान का ब्याह हो गया।
विवाहोत्सव समाप्त कर स्वर्गपति इंद्र अपने स्थान पर गया स्वामी की बतायी हुई ब्याह की रीति तभी से लोक में चली।
उस समय कल्पवृक्षों का प्रभाव काल के दोष से कम होने लग गया था। युगलियों में क्रोधादि कषायें बढ़ने लगी थीं। 'हाकार', 'माकार' और 'धिक्कार की' दंडनीति उनके लिए निरुपयोगी हो गयी थी। झगड़ा बढ़ने लगा था। इसलिए एक दिन सब पुरुष जमा होकर प्रभु के पास गये और अपने दुःख सुनाये। प्रभु ने कहा – 'संसार में मर्यादा उल्लंघन करनेवालों को राजा दंड देता है। अतः तुम किसी का राज्याभिषेक करो। चतुरंगिनी सेना से उसे सशक्त बनाओ। वह तुम्हारे सारे दुःखों को दूर करेगा।'
उन्होंने कहा – 'हम आपही का राज्याभिषेक करना चाहते हैं।'
प्रभु ने कहा – 'तुम नाभि कुलकर के पास जाओ। वे आज्ञा दे . उसका राज्याभिषेक करो।'
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 19 :