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दीवाली पर्व उस समय राजाओं ने देखा कि, अब ज्ञानदीपक-भावदीपक बुझ गया है। इसलिए उन्होंने द्रव्यदीपक जलाये। दीपकप्रकाशन ने बाह्य जगत को प्रकाशित कर दिया। उस दिन की स्मृति में आज भी हिन्दुस्तान में कार्तिक वदि अमावस्या के दिन दीपक जलाते हैं और उस दिन को दीवाली पर्व के नाम से पहचानते हैं।
___ इंद्रादि देवों ने 'निर्वाणकल्याणक' मनाया और तब सभी अपने अपने स्थानों को चले गये।
गौतम गणधर को ज्ञान और मोक्षलाभ
जब देवशर्मा को उपदेश देकर श्री गौतमस्वामी लौटे तो मार्ग में उन्होंने भगवान के निर्वाण होने के समाचार सुने। सुनकर वे शोक-मग्न हो गये और सोचने लगे - रात ही में प्रभु निर्वाण प्राप्त करनेवाले थे, तो भी मुझे उन्होंने दूर भेज दिया। हाय दुर्भाग्य! जीवनभर सेवा करके भी अंत में उनकी सेवा से वंचित रह गया। ये धन्य हैं जो अंत समय में उनकी सेवा में थे; वे भाग्यशाली हैं जो अंतिम क्षणतक प्रभु के मुखारविंद से उपदेशामृत सुनते रहे। हे हृदय! प्रभु के वियोग-समाचार सुनकर भी तूं टूक-टूक क्यों नहीं हो जाता? तूं कैसा कठोर है कि इस वज्र पात के होने पर भी अटल है?
वे फिर सोचने लगे, प्रभुने कितनी बार उपदेश दिया कि मोह-माया जगत के बंधन हैं, परंतु मैंने उस उपदेश का पालन नहीं किया। वे वीतराग थे, मोह-ममता से मुक्त थे। उनके साथ स्नेह कैसा? मैं कैसा भ्रांत हो रहा था। उपकारी प्रभु ने मेरी भ्रांति. मिटाने के लिए ही मुझे दूर भेज दिया था। धन्य प्रभो! आप धन्य हैं! जो आपके सरल उपदेश से निर्मोही न बना उसे आपने त्याग कर निर्मोही बनाया। सत्य है, आत्मा-निर्धांत आत्मा-किससे मोहमाया रखेगा? गौतम सावधान हो, प्रभु के पद चिह्नों पर चल, अपने स्वरूप को पहचान। अगर प्रभु के पास सदा रहना हो तो निर्मोही बन और आत्मस्वरूप में लीन हो।
गौतम स्वामी को इसी तरह विचार करते हुए केवलज्ञान प्राप्त हुआ। फिर उन्होंने बारह वर्ष तक धर्मोपदेश दिया। अंत में वे राजगृह नगर में आये और भवोपग्राही कर्मों का नाश कर मोक्ष में गये।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 299 :