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________________ कहते हो? आगामी दुषमा काल की प्रवृत्ति से तीर्थ को हानि पहुंचनेवाली है। उसमें भावी के अनुसार यह भस्मक ग्रह भी अपना फल दिखलायगा । उस दिन प्रभु को केवलज्ञान हुए उन्तीस बरस पांच महीने और बीस दिन हु थे। उस समय पर्यंकासन पर बैठे हुए प्रभु ने बादर काययोग में रहकर बादर मनोयोग और वचनयोग को रोका। फिर सूक्ष्म काययोग में स्थित होकर योगविचक्षण प्रभु ने बादर काययोग को रोका। तब उन्होंने वाणी और मन के सूक्ष्म योग को रोका। इस तरह सूक्ष्म क्रियावाला तीसरा शुक्ल ध्यान प्राप्त किया। फिर सूक्ष्म काययोग को - जिसमें सारी क्रियाएँ बंद हो जाती है - रोककर समुच्छिन्न- क्रिया नामक चौथा शुक्ल ध्यान प्राप्त किया। फिर पांच हस्व अक्षरों का उच्चारण किया जा सके इतने काल मानवाले, अव्यभिचारी ऐसे शुक्लध्यान के चौथे पाये द्वारा - पपीते के बीज की तरह कर्मबंध से रहित होकर, यथा स्वभाव ऋजुगति द्वारा ऊर्ध्व गमनकर मोक्ष में गये। उस वक्त जिनको लव मात्र के लिए भी सुख नहीं होता है ऐसे नारकी जीवों को भी एक क्षण के लिए सुख हुआ। वह चंद्र नाम का संवत्सर था, प्रीतिवर्द्धन नाम का महीना था, नंदिवर्द्धन नाम का पक्ष था और अग्निवेस' नाम का दिन था। उस रात का नाम देवानंदा± था। उस समय अर्च नाम का लव', शुल्क नाम का प्राण, सिद्ध नाम का स्तोक, स्वार्थसिद्ध नाम का मुहूर्त और नाग नाम का करण था। उस समय बहुत ही सूक्ष्म कुंथू कीट उत्पन्न हुए थे। वे जब स्थिर होते थे तब दिखते भी न थे। अनेक साधुओं ने और साध्वियों ने उन्हें देखा और यह सोचकर कि अब संयम पालना कठिन है, अनशन कर लिया। श्री पार्श्वनाथ मोक्ष जाने के बाद २५० वर्ष बाद कार्तिक वदि अमावस के दिन महावीर स्वामी मोक्ष में गये। - 1. इसका नाम उपशम भी है। 2. इसका दूसरा नाम निरति है । 3. सात स्तोक या ४९ श्वासोश्वास प्रमाण का एक कालविभाग | पावापुरी में देशना देते, सोलह प्रहर भविजन आंते । महावीर शीव वधु को पाते, कातिमावस्या कीप जलाते ॥ : मोक्ष (निर्वाण) : 298 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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