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________________ झगड़ा करेंगे और लोग ( अज्ञानता के कारण) दोनों को समान समझेंगे। गीतार्थ मुनि अंतरंग में उत्तम स्थिति की प्रतीक्षा करते हुए और संयम को पालते हुए बाहर से दूसरों के समान बनकर रहेंगे।' A राजा हस्तिपाल की दीक्षा : राजा को वैराग्य हुआ और राजपाट सुखसंपत्ति को छोड़ उसने दीक्षा ली और घोर तप कर मोक्षपद को प्राप्त किया। कल्की राजा : गौतम स्वामी ने पूछा – 'भगवन! तीसरे आरे के अंत में भगवान ऋषभ देव हुए। चौथे आरे में अजितनाथ तेईस तीर्थंकर हुए जिनमें के अंतिम तीर्थंकर आप हैं। अब दुःखमा नाम के पांचवें आरे में क्या होगा सो कृपा करके फर्माइए!' महावीर स्वामी ने जवाब दिया 'हे गौतम! हमारे मोक्ष जाने के बाद तीन बरस और साढ़े आठ महीने बीतने पर पांचवां आरा आरंभ होगा। हमारे निर्वाण होने के उन्नीस सौ और चौदह बरस बाद पाटलीपुत्र में, म्लेच्छ कुल में एक लड़का पैदा होगा। बड़ा होने पर वह राजा बनेगा और कल्कि, रुद्र और चतुर्मुख नाम से प्रसिद्ध होगा । उस समय मथुरा के रामकृष्ण का मंदिर अकस्मात पुराना वृक्ष जैसे पवन से गिर जाता है. वैसे ही गिर पड़ेगा। क्रोध, मान, माया और लोभ उसमें इसी तरह से जन्मेंगे जैसे लक्कड़ में घुणा जाति का कीड़ा पैदा होता है। उस समय प्रजा को राजा का और चोरों का दोनों ही का भय बना रहेगा। गंध और रस का क्षय होगा। दुर्भिक्ष और अतिवृष्टि का प्रकोष रहेगा। कल्कि अठारह बरस का होगा तब तक महामारी का रोग रहा करेगा। फिर कल्कि राजा बनेगा। 'एक बार कल्कि राजा फिरने को निकलेगा। रास्ते में पांच स्तूपों को देखकर वह पूछेगा कि 'ये स्तूप किसने बनवाये हैं?' उसे जवाब मिलेगा कि-'पहले नंद नाम का एक राजा हो गया है। वह कुबेर के भंडारी जैसा धनिक था। उसने इन स्तूपों के नीचे बहुत सा धन गाड़ा है। आज तक : श्री तीर्थंकर चरित्र : 287 : 1
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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