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एक का नाम श्रेणिक था। श्रेणिक को मंभासार या बिंबसार भी कहते थे। श्रेणिक को बुद्धिमान और वीर जानकर प्रसेनजित ने राज्यगद्दी दी। प्रसेनजित ने राजगृह नगर बसाया था।
अनेक बरसों के बाद, जब अभयकुमार श्रेणिक का मंत्री था तब, श्रेणिक ने वैशाली के अधिनायक चेटक की एक कन्या मांगी। चेटक ने यह कहकर कन्या देने से इन्कार किया कि – 'हैहय वंश की कन्या वाहीकुल (विदेशवंश) वाले को नहीं दी जा सकती।' अभयकुमार युक्ति करके चेटक की सबसे छोटी कन्या चेल्लणा को हर लाया था। चेल्लणा से श्रेणिक के एक पुत्र हुआ। उसका नाम कोणिक था।
राणी चेल्लणा जैन थी और श्रेणिक बौद्ध। चेल्लणा के अनेक यत्न करने पर भी श्रेणिक जैन नहीं हुआ। एक बार श्रेणिक बगीचे में फिरने गया था। वहां एक युवक जैन मुनि को घोर तप करते देखा। उसके तप और त्याग को देखकर श्रेणिक का मन जैनधर्म की ओर झुका। भगवान महावीर विहार करते हुए राजगृही में आये। श्रेणिक महावीर के दर्शन करने गया और उपदेश सुन परम श्रद्धावान श्रावक हो गया।
श्रेणिक के पुत्र, मेघकुमार, नंदीषेण आदि ने, अपने मातापिता की आज्ञा लेकर दीक्षा ले ली। ऋषभदत्त और देवानंदा को दीक्षा :
प्रमु विहार करते हुए, एक बार ब्राह्मण कुंड गांव में आये। देवताओं 1. कुशाग्रपुर में बहुत आग लगने से प्रजा बहुत दुःखी होती थी। इससे राजा ने
हुक्म निकाला कि जिसके घर से आग लगेगी वह शहर बाहर निकाल दिया जायगा। दैवयोग से राजा ही के यहां से इस बार आग लगी। अपने हुक्म के अनुसार व्यवहार करनेवाले न्यायी राजा ने शहर छोड़ दिया और एक माइल दूर डेरे डाले। धीरे-धीरे वहां महल बनवाये और लोग भी जा जाकर बसने लगे। आते जाते लोगों से कोई पूछता – 'कहां जाते हो?' वे जवाब देते – 'राजगृह
(राजा के घर) जाते हैं।' इससे उस शहर का नाम राजगृह पड़ गया। 2. जैनशास्त्रों में इसका दूसरा नाम अशोकचंद्र और बौद्धग्रंथों में इसका नाम
अजातशत्रु लिखा है। इसने अपने पिता राजा श्रेणिक को कैद कर दिया था।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 265 :