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________________ अशुभ हुआ है, इनको पानी में डाला, पकड़ा या पीटने को तैयार हुए या पीटा। इनमें गवाले का, लुहार का और म्लेच्छों के उपसर्ग हैं। उपसर्ग करनेवालों में देव, मनुष्य और तिर्यंच सभी हैं। इन उपसर्गों में अनेक उपसर्ग ऐसे हैं जिन्हें यदि महावीर प्रभु चाहते तो टाल सकते थे। जैसे म्लेच्छों के उपसर्ग और चंडकौशिक के उपसर्ग। उपसर्ग, यदि शांति से सहन किये जाये तो, कर्मों का नाश करने का रामबाण इलाज है। इस बात को महावीर प्रभु जानते थे, और इसलिए उन्होंने उनका आह्वान किया, शांति से उन्हें सहा, अपने कर्मों को क्षय किया, वे जगत्वंद्य बने और अनंत शांति एवं सुख के अधिकारी बने। ___महावीर स्वामी ने हमेशा शुभ मनोयोग, शुभ वचनयोग और शुभ काययोग से प्रवृत्ति की। अशुभ मन, वचन और काय के योगों को हमेशा रोका। कभी ऐसा विचार न किया जो दूसरे को हानि पहुंचाने का कारण हो, कभी ऐसा शब्द न बोले जिससे किसी का अंतःकरण दुःखी हो और कभी शरीर के किसी भी अंग को इस तरह काम में न लाये जिससे कि छोटे से छोटे प्राणी को भी कोई तकलीफ पहुंचे। न कभी भयंकर से भयंकर आघात और प्राणांत संकट के सामने ही उन्होंने सिर झकाया और न कभी स्वर्गीय प्रलोभन में ही वे मुग्ध हुए। वे सदा कर्मों को खपाने में लीन रहे। बारह बरस तक उन्होंने बिना शस्त्र, बिना कषाय और बिना किसी इच्छा के कर्म शत्रु से भयंकर युद्ध किया। सारी दुनिया को अपनी अंगुलियों पर नचानेवाले कर्मों से युद्ध किया, उन्हें हराया और विजेता बन महावीर कहलाये। केवलश्रीने-जो घातिकर्मों की आड़ में खड़ी थी-आगे चढ़कर उन्हें वरमाला पहनायी। वे आत्मलक्ष्मी को प्राप्तकर जगत का उपकार करने के लिए समवसरण के सिंहासन पर जा बिराजे। उपमाएँ : महावीर स्वामी के गुणों का उपमाएँ देकर, बहुत ही सुंदर वर्णन कल्पसूत्र में किया है। उसका अनुवाद हम यहां देते हैं। १. जैसे कांसे का पात्र जल से नहीं लींपा जाता उसी तरह वे भी स्नेहजल से न लींपे गये। निर्लेप रहे। : श्री तीर्थंकर चरित्र : 253 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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