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________________ उपसर्गों के कारण औरं कर्ता : १. उनकी महत्ता का नाश करने के लिए। इनमें शूलपाणी और संगम इन दोनों देवों के और चंडकौशिक के उपसर्ग हैं। २. पूर्वभव का वैर लेने के लिए। इनमें सुद्रष्ट्रका, वाणव्यंतरी का और कानों में कीलें ठोकनेवाले गवाल के उपसर्ग हैं। ३. वहम के कारण। लोगों ने, यह समझकर कि इन्होंने हमारी अमुक वस्तु दबा ली है, ये किसी के गुप्तचर है अथवा इनका शकुन वनमाला वनमाला, पुकारता हुआ इधर उधर फिरने लगा। एक दिन वह राजमहलों में इसी तरह पुकारता हुआ गया। दैवयोग से उसी समय राजा और वनमाला ने उसे देखा! दोनों को पश्चात्ताप हुआ। और उसी समय बिजली पड़ने से वे मर गये। उनका मरना जान, वीरक का चित्त स्थिर हुआ। वह वैराग्यमय जीवन बिताने लगा। राजा और वनमाला मरकर हरिवर्ष क्षेत्र में युगलिया जन्मे। वीरक भी मरकर व्यंतरदेव हुआ। उसने विभंगज्ञान से इस युगल जोड़ी को पहचाना और उनको, नरक गति में डालने के इरादे से, इस क्षेत्र में ले आया और उनके शरीर व आयु कम कर दिये। उनके नाम हरि और हरिणी रखे। उन्हें सप्त व्यसनों में लीन किया। और तब वह अपने स्थान पर चला गया। हरि और हरिणी व्यसनों में तल्लीन मरे और नरक में गये। इस तरह वीरक ने उनसे वैर लिया। उनके वंश में जो जन्मे वे हरिवंश के कहलाये। . युगलिये न कभी इस क्षेत्र में आते हैं और न उनकी आयु या देह ही कम होते हैं; न वे नरक में जाते हैं परंतु ये बातें हुई। यह सातवां आश्चर्य है। ८. चमरेंद्र का सुधर्म देवलोक में जाना - पाताल में रहनेवाले असुर कुमारों का इंद्र कभी ऊपर नहीं जा सकता परंतु चमरेंद्र गया। यह आठवां आश्चर्य है। ९. उत्कृष्ट अवगाहनावालों का एक समय मोक्ष में जाना – उत्कृष्ट अवगाहनवाले १०८ एक समय में मोक्ष नहीं जाते; परंतु इस अवसर्पिणी में ऋषभदेव, भरत सिवाय उनके ९९ पुत्र और भरत के आठ पुत्र ऐसे १०८ उत्कृष्ट अवगाहनवाले एक समय में मोक्ष गये। यह नवां आश्चर्य है। १०. असंयमियों की पूजा - आरंभ और परिग्रह में आसक्त रहनेवालों की कभी पूजा नहीं होती; परंतु नवें और दसवें जिनेश्वर के बीच के काल में हुई। यह दसवां आश्चर्य है। इनमें से ९वां ऋषभदेव के समय में, ७ वां शीतलनाथजी के समय में, ५वां श्रीनेमिनाथजी के तीर्थ में, ३रा मल्लिनाथजी के तीर्थ में १० वां सुविधिनाथजी के तीर्थ में और शेष महावीर के समय में ये सब आश्चर्य हुए। (कल्पसूत्र से) : श्री महावीर चरित्र : 252 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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