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________________ उड़द के बाकलों से पारणा किया।' देवताओं ने वसुधारादि पंच दिव्य प्रकट किये। ___ कोशांबी से विहार कर प्रभु सुमंगल नाम के गांव में आये। वहां सनत्कुमारेन्द्र ने आकर प्रभु को वंदना की। . सुमंगल गांव से प्रभु सत्क्षेत्र गांव आये। वहां माहेन्द्र कल्प के इंद्र ने आकर प्रभु को वंदना की। सत्क्षेत्र से प्रभु पालक गांव गये। वहां भायल नाम का कोई बनिया यात्रा करने जाता था। उसने प्रभु को आते देखा और अपशकुन समझ क्रुद्ध हो तलवार निकाली। सिद्धार्थ देव ने उसकी तलवार से उसीको मार डाला। 1. चंपा नगरी में दधिवाहन राजा था। उसकी रानी धारिणी की कोख से एक रूपवान और गुणवती कन्या जन्मी। उसका नाम वसुमति रखा गया। कोशांबी का राजा शतानीक था। उसकी रानी मृगावती पूर्ण धर्मात्मा थी। एक बार किसी कारण से शतानीक ने चंपा नगरी पर चढ़ायी की। दधिवाहन हार गया। शहर लूटा गया। राणी धारिणी. और उसकी कन्या वसुमती को एक सैनिक पकड़ ले गया। रास्ते में सैनिक की कुदृष्टि धारिणी पर पड़ी। धारिणी ने प्राण देकर अपनी आबरु बचायी। वसुमती कोशांबी में बेची गयी। धनवाह सेठ उसको खरीदकर अपने घर ले गया। उसे पुत्री की तरह पालने की अपनी सेठानी को हिदायत की। वसुमती की वाणी चंदन के समान शीतलता उत्पन्न करनेवाली थी। इससे सेठ ने उसका नाम चंदनबाला रखा। इसी नाम से वह संसार में प्रसिद्ध हुई। जब चंदनबाला बड़ी हुई, यौवन का विकास हुआ, सौन्दर्य से उसकी देह कुंदनसी चमकने लगी तब मूला को ईर्ष्या हुई। सेठ का चंदनबाला पर विशेष हेत देखकर उसे वहम भी हुआ। उसने एक दिन, जब धनावह कहीं चला गया था, चंदनबाला को पकड़कर उसका सिर मुंडवा दिया और उसके पैरों में बेड़ी डालकर उसे गुप्त स्थान में कैद कर दिया। धनावह ने वापिस आया तब चंदनबाला की तलाश की। मूला मकान बंदकर कहीं चली गयी थी। नौकरों ने सेठ के धमका ने पर चंदनबाला का पता बताया। सेठ ने उसे बाहर निकाला। खाने को उस समय उबले हुए उड़द के बाकले रखे थे, वे एक सूप में डालकर उसे दिये और धनावह लुहार को बुलाने गया। चंदनबाला दहलीज में खड़ी हो किसी अतिथि की प्रतीक्षा करने लगी। उसी समय महावीर स्वामी आ गये और अपना अभिग्रह पूरा हुआ समझ बाकुलों से पारणा किया। [नोट - इसकी विस्तृत और सुंदर कंथा ग्रंथभंडार माटुंगा द्वारा प्रकाशित 'स्त्रीरत्न' नामक पुस्तक में पढ़िए।] । : श्री महावीर चरित्र : 248 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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