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________________ आया हुआ था और मध्याह्न काल में, दोनों हाथ ऊंचेकर सूर्यमंडल के सामने दृष्टि स्थिर कर आतापना ले रहा था। वह दयालु और समता भाववाला भी था। धूप की तेजी के कारण बीच-बीच में उसके सिर से जएँ खिर पड़ती थी, उन्हें उठाकर वह वापिस अपने सिर में रख लेता था। कौतुकी गोशालक ने जाकर उसे कहा – 'हे तापस! तूं मुनि है, या मुनीक (पागल) है या जूओं का पलंग है?' तापस कुछ न बोला। इससे दूसरी, तीसरी और चौथी बार उसके ऐसा कहने पर उसे गुस्सा आया और उसने गोशालक पर तेजोलेश्या रखी। महावीर ने दयाकर के उसको शीत लेश्या से बचा लिया। गोशालक ने पूछा – 'भगवन्! तेजो लेश्या कैसे प्राप्त होती है?' महावीर स्वामी ने उत्तर दिया – 'हे गोशालक! जो मनुष्य नियम करके छट्ठ का तप करता है और एक मुट्ठी उड़द के बांकले और एक चुल्लू जल से पारणा करता है। इस तरह जो छ: महीने तक लगातार छंट्ट का तप करता है, उसे तेजो लेश्या की लब्धि प्राप्त होती है।' __कूर्मग्राम से विहार कर प्रभु सिद्धार्थपुर आये। गोशालक यहां से तेजोलेश्या प्राप्त करने को तप करने के लिए श्रावस्ती नगरी चला गया। महावीर स्वामी सिद्धार्थपुर से विहार कर वैशाली आये। यहां सिद्धार्थ क्षत्रिय के मित्र शंक गणराज ने सपरिवार आकर प्रभु को वंदना की। वैशाली से विहार कर महावीर स्वामी वाणीजक गांव को चले। रास्ते में मंडिकीका नाम की एक नदी आती है। उसे एक नौका में बैठकर पार किया. उतरते समय उसने आपसे किराया मांगा। प्रभु के पास किराया कहां था? इसलिए नाविक ने उन्हें रोक रखा। शंख गणराज के भानजे चित्र ने आपको छुड़ाया। आप वाणीजक गांव में पहुंचे। वहां आनंद नामक एक श्रावक रहता था। वह नियमित छट्ट तप करता था और उत्कृष्ट श्रावकधर्म पालता था। इससे उसको अवधिज्ञान हो गया था। उसने आकर प्रभु की वंदनास्तुति की। उसे सही सही बातें बतायी। इससे उसका मन उदास हो गया और वह तप करने निकल गया। फिरता फिरता वह उस दिन कूर्मग्राम में आया था। उसकी माता का नाम वेशिका था इसीसे वह वैशिकायन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवती सूत्र, विशेषावश्यक और कल्पसूत्र में इसका नाम वैश्यायन लिखा है। : श्री महावीर चरित्र : 240 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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