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________________ उन्हें कूए में डाला। फिर निकाला फिर डाला। इस तरह बहुत सी डुबकियां खिलायी। फिर सोमा व जयंति नाम की साध्वियों ने - जो पार्श्वनाथ के शासन की थी-उन्हें पहचाना और छुड़ाया। पृष्ठचंपा में चौथा चोमासा :___चोराक गांव से विहार कर प्रभु पृष्ठचंपा नगरी में आये, चौमासा वही किया वहां चार मासक्षमण (चार महीने का उपवास) करके विविध प्रकार की प्रतिमा - आसन से वह चौमासा समाप्त किया। वहां से विहार कर फिरते हुए महावीर कृतमंगल नाम के शहर में आये और कायोत्सर्ग करके नगर के बाहर रहे। 1. आरंभी, परिग्रहधारी और स्त्रीपुत्रादिवाले पाखंडी वहां रहते थे। वे दरिद्र स्थविर नाम से पहचाने जाते थे। उनके मुहल्ले में किसी देवता की मूर्ति थी। उस मंदिर में प्रभु गये उस दिन उत्सव था। इसलिए सभी सपरिवार वहां इकट्ठे हुए और गीत-नृत्य में रात बिताने लगे। यह देख गोशालक बोला – 'ये पाखंडी कौन है कि जिनकी औरतें भी शराब पीती है और इस तरह मत्त होकर नाचती है।' यह सुनकर दरिद्र स्थविर गुस्से हुए और उन्होंने गोशालक को गर्दनिया देकर बाहर निकाल दिया। माघ का महीना था और सर्दी जोर की पड़ रही थी। गोशालक सर्दी में सिकुड़ रहा था और उसके दांत बोल रहे थे। स्थविरों ने उसे माफ किया और अंदर बुला लिया। जब उसकी सर्दी मिटी तब उसने फिर यही बात कही। उन्होंने फिर निकाला, फिर बुलाया। उसने पुन: वही बात कही। फिर उसे निकाला, फिर बुलाया। तब वह बोला – 'अल्प बुद्धि पाखंडियो! सच्ची बात कहने से क्यों नाराज होते हो? तुम्हें अपने इस दुष्ट चरित्र पर तो क्रोध नहीं आता और मुझ सत्य भाषी पर क्यों क्रोध आता है?' जवान उसे मारने दौड़े; परंतु वृद्धों ने उन्हें यह कहकर मना किया कि यह इन महात्मा का सेवक मालूम होता है। इसकी बातों पर कुछ ध्यान न दो। १. गोशालक ने प्रभु से कहा – 'चलिए गोचरी लेने।' सिद्धार्थ बोला-'आज हमारे उपवास है।' गोशालक ने पूछा – 'आज मुझे कैसा भोजन मिलेगा?' सिद्धार्थ बोला- 'आज तुझे नरमांसवाला भोजन मिलेगा।' गोशालक यह निश्चित करके चला कि मांस की गंध भी न होगी ऐसी जगह भोजन करूंगा।' श्रीवस्ती में पितृदत्त नाम का एक गृहस्थ रहता था। उसके श्रीभद्रा नाम की स्त्री थी। उसके हमेशा मरी हुई संतान पैदा होती थी। उसे शिवदत्त निमित्तिया : श्री महावीर चरित्र : 232 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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