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________________ कोल्लाक से विहार कर महावीर पत्रकाल नामक गांव में आये और एक शून्य गृह में प्रतिमा धारण कर रहे। गोशालक द्वार के पास बैठा।' पत्रकाल से विहारकर महावीर कुमार गांव में आये। वहां 'चंपकरमणीय' नामक उद्यान में काउसग्ग करके रहे।2 कुमार गांव से विहार कर महावीर चोराक गांव में आये। वहां कायोत्सर्ग करके रहे। सिपाही फिरते हुए आये और उन्हें किसी राजा के जासूस समझकर पकड़ा और पूछा – 'तुम कौन हो?' मौनधारी महावीर कुछ न बोले। गोशालक भी चुप रहा। इससे दोनों को बांधकर सिपाहियों ने 1. ऊपर जैसी ही घटना पत्रकाल में भी हुई। यहां गोशाला हंसा, इससे पिटा। 2. यहां कृपनय नाम का एक कुम्हार रहता था। वह बड़ा शराबी था। पार्श्वनाथजी की परंपरा के मुनिचंद्राचार्य अपने शिष्यों सहित उसके मकान में ठहरे हुए थे। वे अपने शिष्य वर्द्धन को आचार्यपद सौंप जिनकल्प का अति दुष्कर प्रतिकर्म करते थे। गोशालक फिरता हुआ वहां जा पहुंचा। उसने चित्रविचित्र वस्त्रों को धारण करनेवाले और पात्रादिक रखनेवाले श्री पार्श्वनाथ की परंपरा के उपर्युक्त साधुओं को देखा। उसने पूछा – 'तुम कौन हो?' उन्होंने जवाब दिया – 'हम पार्श्वनाथ के निग्रंथ शिष्य हैं।' गोशालक हंसा और बोला-'मिथ्या भाषण करनेवालो, तुम्हें धिक्कार है! वस्त्रादि ग्रंथी को धारण करनेवाले तुम निग्रंथ कैसे हो? जान पड़ता है कि तुमने आजीविका के लिए यह पाखंड रचा है। वस्त्रादि के संग से रहित और शरीर में भी ममता नहीं रखनेवाले, जैसे मेरे धर्माचार्य है वैसे निग्रंथ होने चाहिए।' वे जिनेन्द्र को जानते नहीं थे, इससे बोले - 'जैसा लूं है वैसे ही तेरे धर्माचार्य भी होंगे। कारण, वे अपने आप ही लिंगसाधुपन ग्रहण करनेवाले मालूम होते हैं।' इससे गौशाला नाराज हुआ और उसने शाप दिया. – 'मेरे गुरु का तपतेज से तुम्हारा उपाश्रय जल जाय।' मगर उपाश्रय न जला। वह अफसोस करता चला गया। रात को मुनिचंद्र प्रतिमा धारण कर खड़े थे। कुपनय शराब में मत्त होकर आया। उसने मुनि को चोर समझकर इतना पीटा कि, उनकी मृत्यु हो गयी। वे शुभ ध्यान के कारण मरकर देवलोक में गये। देवों ने आकर उनके तप की महिमा की। प्रकाश देखकर गोशालक बोला - 'आखिर मेरा शाप फला।' सिद्धार्थ बोला – 'तेरा शाप नहीं फला, मुनि शुभ . ध्यान से मरे इससे देवता आये हैं। उसीका यह प्रकाश है।' कुतूहली गोशालक गया और सोते हुए शिष्यों को जगाकर उनका तिरस्कार कर आया। : श्री तीर्थंकर चरित्र : 231 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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