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________________ एक बार गांव के लोगों ने आकर कहा – 'महाराज! हमारे गांव में एक अच्छंदक नाम ज्योतिषी रहता है। वह भी आपकी तरह जानकार है।' सिद्धार्थ बोला – 'वह तो पाखंडी है। कुछ नहीं जानता। तुम्हारे जैसे भोले लोगों को ठगकर पेट भरा करता है।' लोगों ने आकर अच्छंदक को कहा - 'अरे! तूं तो कुछ नहीं जानता। भूत, भविष्य और वर्तमान की सारी बातें जाननेवाले महात्मा तो गांव के बाहर ठहरे हुए हैं।' यह सुन अपनी प्रतिष्ठा के नाश का खयालकर वह बोला – 'हे लोगो! वास्तविक परमार्थ को नहीं जाननेवाले तुम लोगों के सामने ही वह बातें बनाता है। अगर वह मेरे सामने कुछ जानकारी जाहिर करे तो मैं समझू कि, वह सचमुच ही ज्ञाता है। मेरे साथ चलो। मैं तुम्हारे सामने ही आज उसका अज्ञान प्रकट कर दूंगा।' यह कहकर क्रुद्ध अच्छंदक महावीर स्वामी के पास आया। गांव के कौतुकी लोग भी उसके साथ आये। अच्छंदक ने एक तिनका अपनी ऊंगलियों के बीच में पकड़कर कहा - 'बोलो, यह तिनका मुझसे टूटेगा या नहीं?' उसने सोचा था - अगर ये कहेंगे कि टूटेगा तो मैं उसे नहीं तोडूंगा, अगर कहेंगे नहीं टूटेगा तो मैं उसे तोड़ दूंगा। . और इस तरह उनकी बात को झूठ ठहराऊंगा। सिद्धार्थ बोला – 'यह नहीं टूटेगा।' वह ज्योंही उस तिनके को तोड़ने के लिए तैयार हुआ कि उसकी पांचों ऊंगलियां कट गयी। यह देखकर गांव के लोग हंसने लगे। इस तरह अपनी बेइज्जती होते देख अच्छंदक पागल की तरह वहां से चला गया। . जिस समय अच्छंदक और सिद्धार्थ की बातें हो रही थी उस समय इंद्र ने प्रभु का स्मरण किया था। उसने अवधिज्ञान द्वारा सिद्धार्थ और अच्छंदक की बातें जानी और प्रभु के मुख से निकली हुई बात मिथ्या न होने देने के लिए उसने अच्छंदक की ऊंगलियां काट डाली। .. अच्छंदक के चले जाने पर सिद्धार्थ बोला – 'वह चोर हैं।' लोगों ने पूछा - 'उसने किसका क्या चोरा है?' सिद्धार्थ बोला - इस गांव में एक वीर घोष नाम का सेवक है।' वह सुनते ही वीर घोष खड़ा हुआ और बोला – 'क्या आज्ञा है?' सिद्धार्थ बोला – 'पहले दस पल प्रमाण का एक पात्र तेरे घर से चुराया गया है?' वीरघोष ने कहा – 'हां,' सिद्धार्थ बोला – 'अच्छंदक ने उसे चुराया है। तेरे घर के पीछे पूर्व दिशा में सरगवा (खजूर) का एक पेड़ है। उसके नीचे एक हाथ का खड्डा खोदकर उसमें वह पात्र अच्छंदक ने गाड़ा है। जा ले आ।' वीरघोष गया और खोदकर पात्र ले आया। वह देखकर गांव के लोग अच्छंदक को बुरा भला कहने लगे। सिद्धार्थ फिर बोला – 'यहां कोई इंद्रशर्मा नाम का गृहस्थ है?' इंद्रशर्मा हाथ जोड़कर खड़ा हुआ और बोला - : श्री महावीर चरित्र : 222 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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