SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आये। पहला चौमासा यहीं किया। पंद्रह दिन इस चौमासे के मोराक गांव में बिताये थे। और शेष साढ़े तीन महीने अस्थिक गांव में बिताये थे। गांव में • आकर शूलपाणि यक्ष के मंदिर में ठहरने की गांव के लोगों से महावीर स्वामी ने आज्ञा चाही। लोगों ने यक्ष का भय बताकर कहा – 'इस जगह जो कोई मनुष्य रात को ठहरता है उसे यक्ष मार डालता है, इसलिए आप अमुक दूसरे स्थान पर ठहरिए।' निर्भय हृदयी महावीर ने वहीं रहने की इच्छा प्रकट की और लाचार होकर गांव के लोगों ने अनुमति दी। . भगवान को अपने मंदिर में देख यक्ष बड़ा नाराज हुआं और उसने उनको अनेक तरह से कष्ट पहुंचाया। श्रीमद् हेमचंद्राचार्य ने उसका वर्णन इस तरह किया है - 'प्रभु जहां कायोत्सर्ग करके रहे थे वहां व्यंतर ने अहहास्य किया। उस भयंकर अट्टहास्य से चारों तरफ ऐसा मालूम होने लगा मानों आकाश फट गया है और नक्षत्र मंडल टूट पड़ा। 'मगर प्रभु के हृदय में इसका कोई मगर कुछ फायदा नहीं हुआ। फिर देवताओं की प्रार्थना करने लगे। तब व्यंतर देव बोला - 'मैं वही बैल हं जिसके लिए मिला हुआ धन तुम खा गये हो और जिसे तुमने भूख से तड़पाकर मार डाला है। मेरा नाम शूलपाणि है। अब मैं तुम सबको मार डालूंगा।' लोगों के बहुत प्रार्थना करने पर उसने कहा - 'मरे हुए मनुष्यों की हड्डियां इकठ्ठी को उस पर मेरा एक मंदिर बनवाओ। उसमें बैल के रूप में मेरी मूर्ति स्थापन करो और नियमित मेरी पूजा होती रहे इसका प्रबंध कर दो।' गांववालों ने शूलपाणि का मंदिर बनवा दिया और उसकी सेवा पूजा के लिए इंद्रशर्मा नामके एक ब्राह्मण को रख दिया। तभी से इस गांव का नाम वर्द्धमान की जगह अस्थिक गांव हो गया। 1. (त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र के गुजराती भाषांतर के फुट नोट में लिखा है कि 'काठियावाड़ का वढ़वाण शहर ही पुराना वर्द्धमान गांव है। वहीं शूलपाणि यक्ष का मंदिर भी है और उसकी प्रतिमा भी।' परंतु हमें यह अनुमान ठीक नहीं जान पड़ता। कारण १. मोराक मगध में था। मगध से चौमासे के १५ दिन बिताकर, बाकी साढ़े तीन महीने बिताने के लिए काठियावाड़ में आ नहीं सकते थे। आते तो आधे से ज्यादा चौमासा रास्ते ही में बीत जाता। २. चौमासा समाप्त होने पर फिर. भगवान मोराक गांव में जाते हैं। इससे साफ है कि अस्थि गांव या वर्द्धमान गांव कहीं मगध में या इसके आसपास ही होना चाहिए।] : श्री महावीर चरित्र : 218 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy