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________________ लड़कों पर सवारी करता था। वर्द्धमान स्वामी जीते। वे सब राजकुमारों पर चढ़-चढ़ कर दांव लेने लगे। लड़के का रूप धारण किये हुए देव भी उनके अंदर था। उसकी घोड़ा बनने की पारी आयी। वह प्रभु को लेकर भागा और इतना ऊंचा हो गया कि उसके कंधे पर बैठे हुए वर्द्धमान स्वामी ऐसे मालूम होने लगे मानों वे आकाश में पहुंच गये हैं। लड़के भय से चिल्लाये। वर्द्धमान स्वामी ने अपने ज्ञानबल से उसकी दुष्टता जानी और उसके कंधे पर जोर से एक घूंसा मारा। वह दुःख से चिल्लाकर छोटे लड़कों सा हो गया। उसने प्रभु को कंधे से उतारा और अपने देवरूप से प्रभु को नमस्कार किया। फिर वह अपने स्थान पर चला गया। अध्ययन : जब वे 'आठ वर्ष के हुए तब पाठशाला में भेजने की विधि की, उस समय इंद्र का आसन कांपा । उसने अवधिज्ञान से प्रभु को पाठशाला भेजने की बात जानकर एक ब्राह्मण का रूप धरकर आया और उसने उपाध्याय से कुछ प्रश्न पूछे। उपाध्याय जवाब न दे सका तब प्रभु ने उसके प्रश्नों के उत्तर दिये। यह देखकर सभी लोगों को अचरज हुआ। फिर ब्राह्मण के रूप में आये हुए इंद्र ने कहा - 'हे उपाध्याय ! महावीर सामान्य बालक नहीं है। ये तो पूर्वोपार्जित पुण्य के कारण महान ज्ञानवान है। ' इंद्र ने महावीर स्वामी से शब्द - व्युत्पत्ति आदि व्याकरण संबंधी अनेक प्रश्न पूछे। उसे उन सबका योग्य उत्तर मिला। इससे उसको बहुत संतोष हुआ और उसने प्रभु के उत्तरों को जो उन्होंने इंद्र को और उसको दिये थे – संग्रह कर, जगत में जिनेन्द्र - व्याकरण के रूप में प्रसिद्ध किया। ब्याह और संतान : युवा होने पर वर्द्धमान स्वामी का ब्याह राजा समरवीर की पुत्री यशोदादेवी के साथ हुआ। वर्द्धमान स्वामी की इच्छा शादी करने की न थी; परंतु माता पिता की प्रसन्नता के लिए और अपने भोगावली कर्मों का उपभोग किये बिना छुटकारा न था इसलिए उन्होंने ब्याह किया था। यशोदादेवी की कोख से प्रियदर्शना नाम की एक कन्या हुई । : श्री तीर्थंकर चरित्र : 211 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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