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अभिषेक में चौसठ हजार कलश होते हैं। (जन्मोत्सव और. बलप्रदर्शन) :
इस अवसर्पिणी काल के चौबीस वे तीर्थंकर महावीर स्वामी का शरीर-प्रमाण दूसरे तेईस तीर्थंकरों से बहुत ही छोटा था, इसलिए अभिषेक करने की संमति देने के पहले इंद्र के मन में शंका हुई कि, भगवान का यह बाल-शरीर इतनी अभिषेक-जल-धारा को कैसे सह सकेगा? (इस इन्द्र का यह प्रथम जन्माभिषेक का कार्य था)
- अवधिज्ञान से भगवान ने यह बात जानी और उन्होंने अपने बाएँ पैर के अंगूठे से मेरु पर्वत को दबाया। पर्वत कांप उठा। प्रभुजन्म-महोत्सव के समय यह उपद्रव कैसे हुआ? इंद्र ने अवधिज्ञान से देखा। उसे प्रभु का बल विदित हुआ और उसने तत्काल ही क्षमा मांगी। अभिषेक, भक्तिपूजनादि की विधि समाप्त कर, इंद्र प्रभु को वापिस त्रिशला देवी की गोद में सुला, प्रभुप्रतिबिंब ले, माता की अवस्वापनिका निद्रा हर, घर में बत्तीस करोड़ मूल्य के रत्न, सुवर्ण, रजतादि की वृष्टि करवाकर प्रभु को या प्रभु की माता को कष्ट देने का कोई उपद्रव न करे ऐसी घोषणा करवाकर अपने स्थान पर गया। ..
. . - सिद्धार्थ राजा ने सवेरे ही प्रभु का जन्मोत्सव मनाया, कैदियों को 1. तीर्थंकरों में कितना बल होता है? इसका उल्लेख शास्त्रों में इस तरह किया गया
बारह योद्धाओं का बल एक गोद्धा (बैल) में होता है; दस बैलों का बल एक घोड़े में होता है; बारह घोडों का बल एक भैसे में होता है; पंद्रह भैसों का बल मत्तं हाथी में होता है; पांच सौ मत्त हाथियों का बल एक केसरी सिंह में होता है; दो हजार केसरी सिंहों का बल एक अष्टापद में होता है; दस लाख अष्टापदों का बल एक बलदेव में होता है; दो बलदेवों का बल एक वासुदेव में होता है; दो वासुदेवों का बल एक चक्रवर्ती में होता है; एक लाख चक्रवर्तियों का बल एक नागेन्द्र में होता है; एक करोड़ नागेन्द्रों का बल एक इंद्र में होता है ऐसे अनंतें इंद्रों का बल जिनेन्द्रों की चट्टी अंगुली में होता है। . इसलिए तीर्थंकर 'अतुल बलधारी' कहाते हैं।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 209 :