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________________ उसके गालों पर हाथ फैरने लगा। उसने मन ही मन उसके साथ विवाह करने का निश्चय किया। दूसरे दिन वह जब अपनी सभा में गया तब उसने शहर के सभी प्रतिष्ठित पुरुषों को बुलाया और पूछा – 'मेरे राज्य में कोई रत्न उत्पन्न हो तो उसका स्वामी कौन है?' सबने कहा – 'आप हैं।' राजा ने फिर पूछा – 'मैं उसका स्वामी हो सकता हूं।' सबने जवाब दिया – 'हां महाराज, आप हो सकते हैं। राजा ने फिर पूछा – 'सोचकर कहो, क्या मैं उस रत्न का उपभोग कर सकता हूं?' वे क्या जानते थे कि राजा छल करके उनसे बातें पूछ रहा है। सब ने शुद्ध भाव से कहा – 'हा कृपानाथ, आप कर सकते हैं। तब राजा बोला- 'मेरे घर जन्मे हुए कन्या रत्न से मैं ब्याह करना चाहता हूं।' राजा की बात सुनकर सभी सन्नाटे में आ गये। उनके मुंह उतर गये। किसी की जबान में शब्द नहीं था। राजा बोला - 'तुम लोगों ने ही संमति दी है कि मेरे राज्य में जो रत्न हो उसका मैं स्वामी हूं। अब चुप क्यों हो? मैं इस समय तुम्हारी मौजूदगी में गांधर्व विवाह करूंगा।' राजा ने मृगावती को बुलाकर शहर के सभी प्रतिष्ठित पुरुषों की उपस्थिति में उससे गांधर्व विवाह कर लिया। महादेवी भद्रा पति के इस घृणित कार्य से बड़ी लज्जित हुई और अपने पुत्र बलदेव अचल को साथ ले दक्षिण में चली गयी। राजकुमार अचल ने अपने बल एवं पराक्रम से माहेश्वरी नामक एक नया नगर बसाया। कुछ दिन वहां रह शहर को व्यवस्थित कर वह अपने पिता के पास चला गया। और पिता के दोष की उपेक्षा कर वह भक्ति सहित उनकी सेवा करने लगा। शहर के लोग राजा को रिपुप्रतिशत्रु की जगह प्रजापति कहकर पुकारने लगे, कारण वह अपनी प्रजासंतान का पति हुआ था। राजा ने मृगावती को पट्टरानी पद से सुशोभित किया। कालांतर में मरीचि का (विश्वभूति का) जीव महाशुक्र देवलोक से च्यवकर उसके गर्भ में आया। उस रात महादेवी ने वासुदेव के जन्म की सूचना देनेवाले सात शुभ स्वप्न देखे। समय पर एक पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ। उसके पृष्ठ भाग में तीन : श्री महावीर चरित्र : 200 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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