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विश्वभूति के पास जाकर क्षमा मांगी और उससे राज लेने का आग्रह किया; परंतु त्यागी विश्वभूति ने यह बात स्वीकार न की।
एक. बार एकाकी विहार करते हुए विश्वभूति मुनि मथुरा आये। विशाखानंदी भी उस समय मथुरा आया था इसी शहर में उसका ससुराल था। विश्वभूति मुनि एक महीने के उपवास के बाद गोचरी लेने शहर में जा रहे थे। जब वे विशाखानंदी के मकान के पास पहुंचे तो नौकरों ने और उसने विश्वभूति को पहचाना। विशाखानंदी मुनि को देख यह सोच उन पर गुस्से हुआ कि, इसीके कारण से पिताजी ने मेरा तिरस्कार किया था। इतने ही में एक गाय दौड़ती हुई आयी और विश्वभूति मुनि से टकरायी। मुनि गिर पड़े। विशाखानंदी और उसके नौकर हंस पड़े। वह मुनि को उद्देश कर बोला 'अरे! आज तेरा झाड़ के फल गिराने का बल कहां गया?' इस तिरस्कार से मुनि गुस्से हुए। उन्होंने, उठकर, गाय को सींग पकड़कर उठाया, घुमाया और आकाश में उछाल दिया। इस पराक्रम को देखकर विशाखानंदी और उसके नौकर लज्जित हो गये। विश्वभूति मुनि ने यह नियाणा किया कि, मेरे तप के प्रभाव से भवांतर मैं बहुत बल शाली होऊं और मेरा अपमान करनेवाले विशाखानंदी को दंड दूं। . ... मरीचि का जीव विश्वभूति मुनि आयु पूर्णकर महाशुक्र देवलोक में उत्कृष्ट आयुवीला देवता हुआ। त्रिपृष्ठ वासुदेव का भव :- .
. भरतक्षेत्र के पोतनपुर नामक नगर में रिपुप्रतिशत्रु नामक राजा राज्य करते थे। उनकी पटरानी भद्रा के गर्भ से चार स्वप्नों से सूचित एक पुत्र जन्मा। उसका नाम 'अचल' रखा गया। उसके बाद भद्रा ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। उसका नाम मृगावती रखा गया। धीरे-धीरे यौवन ने वसंत ऋतु की मांति, मृगावती पर अपना साम्राज्य स्थापित किया। महादेवी भद्र को, अपनी प्रिय पुत्री को यौवनवती देख उसके विवाह की चिंता हुई। एक दिन मृगावती अपने पिता को प्रणाम करने गयी थी। उसके रूप लावण्य को देखकर राजा कामांध बना। मृगावती को अपनी गोद में बिठाकर वह
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 199 :