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________________ ऐसा विचित्र वेष देखकर लोग उससे धर्म पूछते थे; मगर वह लोगों को शुद्ध जैनधर्म का ही उपदेश देता था। जब कोई उसे पूछता कि, तुमने ऐसा विचित्र वेष क्यों बनाया है तो वह जवाब देता- 'मैं इतना कठिन तप नहीं कर सकता इसलिए ऐषा बेष बनाया है। ' एक बार महाराज भरत चक्रवर्ती के प्रश्न पर भगवान ऋषभदेव ने उनके बाद होनेवाले तीर्थंकरों और चक्रवर्तियों आदि के नाम बताये। भरत ने पूछा - 'प्रभु इस समवसरण में भी कोई ऐसा जीव है जो इस चौबीसी में तीर्थंकर होगा?' भगवान ने जवाब दिया- 'तुम्हारा पुत्र मरीचि भरतक्षेत्र में महावीर नाम का चौबीसवां तीर्थंकर होगा, पोतनपुर में त्रिपृष्ठ नाम का पहला वासुदेव होगा और महाविदेह क्षेत्र की मूकापुरी में प्रियमित्र नाम का चक्रवर्ती होगा।' फिर भरत उठकर मरीचि के पास गये और मैं आपको इस वेष के कारण, वासुदेव, चक्रवर्ती बनोगे इसलिए वंदन नहीं करता । परंतु आप इस भरत क्षेत्र में अंतिम तीर्थंकर बनोगे इसलिए वंदना करता हूं। यह बात सुनकर मरीचि खुशी से नाचने लगा और कहने लगा – 'दुनिया में मेरे समान कौन कुलीन होगा कि जिसके पिता पहले चक्रवर्ती हैं, जिसके दादा पहले तीर्थंकर हैं और जो खुद पहला वासुदेव, चौबीसवां तीर्थंकर और ' विदेहक्षेत्र में चक्रवर्ती होगा।' इस तरह कुल का गर्व करने से उसने नीच गोत्र बांधा। भगवान मोक्ष में गये उसके बाद भी वह त्रिदंडी के वेश में रहता था और शुद्ध धर्म का ही उपदेश करता था। एक बार बीमार हुआ; 1 परंतु उसे संयमहीन समझकर साधुओं ने उसकी सेवा शुश्रूषा न की । इससे मरीचि के मन में क्षोभ हुआ और सोचने लगा 'ये साधु लोग बड़े ही स्वार्थी, निर्दय और दाक्षिण्यहीन है कि बीमारी में भी मेरी शुश्रूषा नहीं करते। यह सच है कि, मैंने संयम छोड़ा है, परंतु धर्म तो नहीं छोड़ा ? मैंने विनय का तो त्याग नहीं किया? इनको क्या लोकव्यवहार का भी ज्ञान नहीं है? फिर सोचा - 1. किसी कथा में भगवान की उपस्थिति में यह प्रसंग बना ऐसा वर्णन है । : श्री महावीर चरित्र : 196 : --
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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