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________________ तरफ आ रहे थे कि जंगल ही में सूर्यास्त हो गया। वहां पास ही में कुछ तापसों के घर भी थे। प्रभु एक कुएं के पास वट वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग कर ध्यान में मग्न हो गये। ___कमठ के जीव ने - जो मेघमाली देव हुआ था-अवधिज्ञान से पार्श्वनाथ को, जंगल में जान, अपने पूर्व भव का वैर याद कर, दुःख देना स्थिर किया। उसने शेर, चीत्ते, हाथी, बिच्छू, सांप वगैरा अनेक भयंकर प्राणी, अपनी देवमाया से पैदा किये। वे सभी गर्जन, तर्जन, चीत्कार, फुत्कार आदि से प्रभु को डराने लगे; परंतु पर्वत के समान स्थिर प्रभु तनिक भी चलित न हुए। इससे सभी अदृश्य हो गये। जब इन प्राणियों से प्रभु न डरे तो मेघमाली ने भयंकर मेघ पैदा किये। आकाश में कालजिह्वा के समान भयानक बिजली चमकने लगी, यह ब्रह्मांड को फोड़ देगी ऐसी भीति उत्पन्न करनेवाली मेघों की गर्जना होने लगी और ऐसा घोर अंधकार हुआ कि आंख की रोशनी कोई . चीज देखने में असमर्थ थी। ऐसा मालूम होता था कि पृथ्वी और आकाश दोनों एक हो गये हैं। - अब मूसलधार पानी बरसने लगा। बड़े-बड़े ओले गिरने लगे। जंगल के पशु पक्षी व्याकुल जलधारा में बह बहकर जाने लगे। पानी प्रभु के घुटने तक आया, छाती तक आया। और होते होते नासिका तक पहुंच गया। वह वक्त करीब था कि प्रभु का शरीर सारा पानी में डूब जाता और श्वासोश्वास बंद हो जाता, उसी समय सर्प के जीव को - जो धरणेंद्र हुआ थायह बात मालूम हुई। वह तुरंत अपनी रानियों सहित दौड़ पड़ा। उसकी गति ऐसी मालूम होती थी मानो वह मन से भी जल्दी दौड़ जायगा। ___उसने प्रभु के पास पहुंचते ही एक सोने का कमल बनाया, प्रभु को उस पर चढ़ाया और अपने फन फैलाकर तीन तरफ से प्रभु को ढक लिया। धरणेन्द्र की रानियां प्रभु के आगे नृत्य, नाट्यादि से भक्ति करने लगी। __जब वर्षा का उपद्रव बहुत देर तक शांत न हुआ तब धरणेन्द्र ने अवधिज्ञान के उपयोग से मेघमाली का यह कृत्य जानकर क्रुद्ध होकर बोला- 'हे मेघमाली! अपनी दुष्टता अब बंद कर। यद्यपि मैं प्रभु का सेवक : श्री पार्श्वनाथ चरित्र : 190 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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