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करना हरेक के लिए सरल नहीं था। उसमें एक शंख रखा हुआ था। वह इतना भारी था कि अच्छे अच्छे योद्धा भी उसे उठा नहीं सकते थे, बजाने की बात ही क्या थी?
एक दिन अरिष्टनेमि फिरते हुए कृष्ण की आयुधशाला में पहुंच गये। उन्होंने इतना बड़ा शंख देखा और कुतूहल के साथ सवाल किया 'यह क्या है ? और यहां क्यों रखा गया है?'
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नौकर ने जवाब दिया- 'यह शंख है। पांचजन्य इसका नाम है। यह इतना भारी है कि श्रीकृष्ण के सिवा कोई इसे उठा नहीं सकता है । ' अरिष्टनेमि हंसे और शंख उठाकर बजाने लगे। शंखध्वनि सुनकर शहर कांप उठा। श्रीकृष्ण विचारने लगे, ऐसी शंखध्वनि करनेवाला आज कौन आया है? इंद्र है या चक्रवर्ती ने जन्म लिया है? उसी समय उनको खबर मिली कि, यह काम अरिष्टनेमि का है। उन्हें विश्वास न हुआ। वे खुद गये। देखा कि अरिष्टनेमि इस तरह शंख बजा रहे हैं मानो कोई बच्चा खिलौने से खेल रहा हो।
कृष्ण को शंका हुई, कि क्या आज सबसे बलशाली होने का मेरा दावा यह लड़का खारिज कर देगा? उन्होंने इसका फैसला कर लेना ठीक समझकर अरिष्टनेमि से कहा - 'भाई! आओ! आज हम कुश्ती करें। देखें कौन बली है।' अरिष्टनेमि ने विवेक किया – 'बंधु! आप बड़े हैं, इसलिए हमेशा ही बली हैं।' श्रीकृष्ण ने कहा – 'इसमें क्या हर्ज है? थोड़ी देर खेल ही हो जायगा।' अरिष्टनेमि बोले - धूल में लौटने की मेरी इच्छा नहीं है। मगर बलपरीक्षा का मैं दूसरा उपाय बताता हूं। आप हाथ लंबा कीजिए। मैं उसे झुका दूं। और मैं लंबा करूं आप उसे झुकायें। जो हाथ न झुका सकेगा वही कम ताकतवाला समझा जायगा।'
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श्रीकृष्ण को यह बात पसंद आयी। उन्होंने हाथ लंबा किया। अरिष्टनेमि ने उनका हाथ इस तरह झुका दिया जैसे कोई बैंत की पतली लकड़ी को झुका देता है।' फिर अरिष्टनेमि ने अपना हाथ लंबा किया; परंतु श्रीकृष्ण उसे न झुका सके। वे सारे बल से उसको झुकाने लगे पर वे इस तरह झूल गये जैसे कोई लोहे के डंडे पर झूलता हो । श्रीकृष्ण का सबसे
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 159 :