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बड़ा खुश हूं। यह जानकर तो मुझे अधिक खुशी हुई है कि तुम मेरे मित्र हरिनंदी के पुत्र हो।' उसे और विमलबोध को लेकर वह शहर में गया। राजा ने डाकू को माफ कर दिया। और अपराजित के साथ अपनी कन्या कनकमाला का ब्याह कर दिया। अपने मित्र हरिनंदी को भी इसकी सूचना कर दी और यह भी कहला दिया कि अपराजित थोड़े दिन कौशल में ही रहेगा।
एक दिन रात में अपराजित अपने मित्र विमलबोध को लेकर किसी को कहे बगैर चुप चाप चल पड़ा। रास्ते में चलते हुए उसने सुना – 'हाय! पृथ्वी क्या आज पुरुषविहीन हो गयी है? अरे! कोई मुझे इस दुष्ट से बचाओ!' अपराजित चौंक पड़ा। उसने घोड़े को आवाज की तरफ.घुमा दिया। जहां से आवाज आयी थी वहां दोनों मित्र पहुंचे। उन्होंने देखा कि अग्निकुंड के पास एक पुरुष एक स्त्री की चोटी एक हाथ से पकड़े और दूसरे हाथ से तलवार उठाये उसे मारने की तैयारी में है।' ...
अपराजितने ललकारा – 'नामर्द! औरतों पर तलवार उठाता है? अगर कुछ दम हो तो पुरुषों के साथ दो दो हाथ कर!' वह पुरुष स्त्री को छोड़कर अपराजित पर झपटा। अपराजित ने उसका वार खाली कर दिया। दोनों थोड़ी देर तक असि युद्ध करते रहे। उसकी तलवार टूट गयी, तो अपराजित ने भी अपनी तलवार डाल दी और दोनों बाहुयुद्ध करने लगे। अपराजित से अपने को हारता देख उस विद्याधर ने माया से अपराजित को नागपाश में बांध लिया। पूर्व पुण्य से बली बने हुए अपराजित ने पाशको तोड़ डाले और खड्ग उठाकर उस पर आघात किया। वह जख्मी होकर गिरा
और बेहोश हो गया। विमलबोध और अपराजित ने उपचार करके उसको होश कराया। जब उसे होश आया तब अपराजित बोला – 'और भी लड़ने की इच्छा हो तो, मैं तैयार हूं।' वह बोला – 'मैं पूरी तरह से हार गया हूं। आप मेरी थैली में मणी और जडीबुट्टी दवा है, वह मणि के जल में घिसकर मेरे घाव पर लगा दीजिए ताकि मेरे घाव भर जाये।' अपराजित ने औषध लगाया और वह अच्छा हो गया।
अपराजित के पूछने पर विद्याधर बोला – 'मेरा नाम सूर्यकांत है
: श्री नेमिनाथ चरित्र : 152 :