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दर्शनार्थ आया। उसने हाथ जोड़कर पूछा – 'मैं पूर्व जन्म के किन कर्मों से इस जन्म में राजा हुआ हूं और मुझे प्रति दिन पांच अद्भुत वस्त्र और फलादि चीजें भेट स्वरूप क्यों मिलती हैं? मैं इन वस्तुओं का भोग क्यों नहीं कर सकता हूं? क्यों इन्हें इष्ट जनों के लिए रख छोड़ता हूं?' भगवान ने उत्तर दिया – 'तुम्हें साम्राज्य लक्ष्मी मिली है इसका कारण यह है कि तुमने पूर्व जन्म में एक मुनि को दान दिया था। फिर भगवान ने विस्तारपूर्वक उसके पूर्वजन्म का वृत्तांत इस तरह कहना आरंभ किया -
भरतक्षेत्र के कौशल देश में श्रीपुर नामक एक नगर था। उसमें सुधन, धनपति, धनदं और धनेश्वर ये चार एकसी उम्रवाले वणिक पुत्र रहते थे। एक समय ये चारों मित्र परदेश में द्रव्योपार्जन करने के लिए अपने घर से रवाना हुए। उनके साथ में भोजन का सामान लेनेवाला द्रोण नामक एक सेवक था। मार्ग में जाते-जाते उन्हें एक वन में एक मुनि का समागम हुआ। उन्होंने अपने भोजन में से थोड़ा मुनि महाराज को देने के लिए द्रोण से. कहा। द्रोण ने बड़ी श्रद्धा से मुनिजी को प्रतिलाभित कर आहार दिया। वहां से सब रत्नद्वीप में पहुंचे और बहुत सा द्रव्योपार्जन कर अपने देश को लौटे।
. द्रोण धर्मकरणी करके मरा। हस्तिनापुर में राजा के यहां जन्मा। वही द्रोण तुम कुरुचंद्र हो। चारों में से सुधन और धनद भी मरकर वणिक पुत्र हुए हैं। उनमें से सुधन कंपिलपुर में पैदा हुआ है और धनद कृत्तिकापुर में। पहले का नाम है वसंतदेव और दूसरे का नाम है कामपाल| धनपति और धनेश्वर मायाचारी थे इसलिए वे मरकर स्त्री रूप में वणिक के घर जन्मे हैं। उनका नाम मदिरा और केसरा है। पूर्व भव में प्रीति थी इससे इन चारों का समागम हुआ है। वसंतदेव के साथ केसर का ब्याह हुआ है और कामपाल के साथ मदिरा का। दोनों दंपती अभी विद्यमान हैं और यहीं मौजूद है।
इतनी कथा कहकर भगवान ने फिर आगे कहना आरंभ किया - 'हे राजा! पूर्व जन्म के स्नेह के कारण तुम्हें जो पांच अद्भुत वस्तुओं की भेट मिलती थी उनका उपयोग तुम नहीं कर सकते थे। अब अपने मित्रों के साथ तुम उन वस्तुओं का उपभोग कर सकोगे। इतने दिनों तक इष्ट
: श्री नीर्थंकर चरित्र : 129 :