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कृतियों द्वारा कुमार अपने मातापिता को आनंद देने लगे। जब शांतिकुमार युवावस्था को प्राप्त हुए तब विश्वसेन ने अत्याग्रह कर शांतिकुमार का अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह कर दिया। फिर विश्वसेन ने शांतिकुमार को राज्य देकर अपना जीवन सार्थक बनाने के लिए व्रत ग्रहण किया।
शांतिकुमार राजा ने अब राज्य की बागडोर अपने हाथ में ली। और न्यायपूर्वक राज्य करने लगे। उनकी यशोमति नामक एक पट्टरानी थी। उसकी कोख में दृढ़रथ का जीव स्वार्थसिद्ध विमान से च्यवकर आया। उसी रात को महादेवी ने अपने स्वप्न में मुंह में चक्ररत्न को प्रवेश होते देखा। यथा समय महादेवी के एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम चक्रायुध रखा गया। धीरे-धीरे राजकुमार युवावस्था को प्राप्त हो सब विद्याओं में पारंगत हो गया। शांतिकुमार ने अपने पुत्र राजकुमार का अनेक राजकुमारियों के साथ विवाह कर दिया।
____ कालांतर में शांतिकुमार के शस्त्रागार में चक्ररत्न का प्रादुर्भाव हुआ। उन्होंने चक्ररत्न के प्रभाव से छः खंड पृथ्वी को जीत लिया।
इसके उपरांत शांतिकुमार राजा ने वरसींदान दिया। फिर उन्होंने सहसाम्र वन में ज्येष्ठ कृष्णा, चतुर्दशी के दिन भरणी नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण की। इंद्रादि देवों ने दीक्षा कल्याणक का उत्सव किया। दूसरे दिन भगवान ने सुमित्र राजा के यहां पारणा किया। राजमंदिर में वसुधारादि पांच दिव्य प्रकट हुए।
एक वर्ष तक अन्यत्र विहारकर भगवान फिर हस्तिनापुर के सहसाम्रवन में आये। यहां पोष सुदि नवमी के दिन भरणी नक्षत्र में उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। इंद्रादि देवताओं ने मिलकर समवसरण की रचना की और ज्ञानकल्याणक मनाया। भगवान के शासन में शूकर के वाहनवाला गरुड़ शासन देवता और कमल के आसन पर स्थित, हाथ में कमंडल, पुस्तकादि धारण करनेवाली 'निर्वाणी' नाम की शासन देवी प्रकट हुई।
एक समय विहार करते-करते भगवान ने फिर हस्तिनापुर में पदार्पण किया। इस समाचार को सुनकर उनका पोता कुरुचंद भगवान के
: श्री शांतिनाथ चरित्र : 128 :