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फिर वज्रायुद्ध चक्री ने भी कुछ काल के बाद अपने पुत्र सहस्रायुद्ध को राज्य देकर क्षेमंकर भगवान के पास दीक्षा ली। सहस्रायुद्ध ने भी कुछ काल बाद पिहिताश्रव मुनि के पास दीक्षा ली। अंत में दोनों राजमुनियों ने एक साथ ईषतप्राग्भार नाम के पर्वत पर जाकर पादोपगमन अनशन किया। नवां भव (अहमिंद्र देव)
आयु पूर्ण कर दोनों मुनि परम समृद्धिवाले तीसरे ग्रैवेयक में अहमिंद्र हुए और पचीस सागरोपम की आयु वहां पूरी की। दसवां भव (मेघरथ) :
जंबूद्वीप के पूर्व विदेह के पुष्कलावती विजय में सीतानदी के किनारे पुंडरीकिणी नाम की नगरी है। उसमें घनरथ नाम का राजा राज्य करता था। उसकी प्रियमती और मनोरम नाम की दो पत्नियां थी। वज्रायुद्ध का जीव ग्रैवेयक विमान से च्यवकर महादेवी प्रियमती की कोख से जन्मा और सहस्रायुद्ध का जीव च्यवकर मनोरमा देवी के गर्भ से जन्मा। दोनों के नाम क्रमशः मेघरथ और द्रढ़रथ रखे गये। . . ... जब दोनों जवान हुए तब उनके ब्याह सुमंदिरपुर के राजा निहतशत्रु की तीन कन्याओं के साथ हुए। मेघरथ के साथ जिनका ब्याह हुआ उनके नाम प्रियमिंत्रा और मनोरमा थे और द्रढ़रथ के साथ जिसका ब्याह हुआ उसका नाम सुमति था।
___ जब मेघरथ और द्रढ़रथ ब्याह करने गये थे तब की बात है। पुंडरीकिणी से सुमंदिर पुर जाते हुए रस्ते में सुरेन्द्रदत्त राजा का राज्य आया। उसने मेघरथ को कहलाया कि, तुम मेरी सीमा में होकर मत जाना। कुमार मेघरथ ने इस बात को अपना अपमान समझाा और सुरेन्द्रदत्त पर आक्रमण कर दिया। घोर युद्ध हुआ और सुरेन्द्रदत्त ने हारकर आधीनता स्वीकार कर ली। वे उसको अपने साथ लेते गये। और वापिस लौटते समय . सुरेन्द्रदत्त को उसकी राजगद्दी सौंपते आये।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 121 :