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गयी। इस कारण से वह उनको महाविद्या देकर चला गया।
अनंतवीर्य के यहां बर्बरी और किराती नाम की दो दासियां थीं। वे संगीत, नृत्य एवं नाट्यकला में बड़ी निपुण थीं। वे समय समय पर अनंतवीर्य और अपराजित को अपनी विविध कलाओं द्वारा बड़ा आनंद दिया करती
थी।
एक समय अनंतवीर्य वासुदेव और अपराजित बलदेव राजसभा में उन रमणियों की नाट्यकला का आनंद लूट रहे थे। चारों और हर्ष ही हर्ष था। उसी अवसर पर, दूसरों को लड़ा देने में ख्यात, नारद का सजसमा में आगमन हुआ। मगर दोनों भाई नाटक देखने में इतने निमग्न थे कि वे नारद मुनि का यथोचित सत्कार न कर सके। बस फिर क्या था? नारद मुनि उखड़ पड़े और अपने मन में यह सोचते हुए चले गये कि मैं इस अपमान का इन्हें अभी फल चखाता हूं।
___ वायुवेग से वैताढ्य गिरि पर गये और दमितारि नामक विद्याधरों के राजा की सभा में पहुंचे। राजा ने अचानकं मुनि का आगमन देखकर सिंहासन छोड़ दिया। उनका स्वागत करने के लिए वह सामने आया और उसने उन्हें, नम्रतापूर्वक अभिवादन कर, उचित आसन पर बिठाया। मुनि ने आशीर्वाद देकर कुशल प्रश्न पूछा। यथोचित उत्तर देकर दमितारि ने कहा - 'मुनिवर्य! आप स्वच्छंद होकर सब जगह विचरते हैं और सब कुछ देखते
और सुनते हैं। इसलिए कृपाकर कोई ऐसी आश्चर्य युक्त बात बतलाईये जो मेरे लिये नयी हो।'
नारद तो यही मौका ढूंढ रहे थे, बोले - 'राजन्! सुनो, एक समय मैं घूमता घामता शुभा नगरी में जा निकला। वहां अनंतवीर्य की सभा में बर्बरी और किराती नामक दो दासियां देखीं। वे संगीत, नाट्य एवं वाद्य कला में बड़ी चतुर है। उनकी विद्या देखकर मैं तो दंग रह गया। स्वर्ग की अप्सराएँ तक उनके सामने तुच्छ हैं। हे राजा! वे दासियां तेरे दरबार के योग्य है।'
इस तरह का विषबीज बोकर नारद मुनि आकाश मार्ग से अपने
: श्री शांतिनाथ चरित्र : 108 :