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योगिराज श्रीमद् श्रानन्दघनजी के पदों में भक्ति एवं वैराग्य का निर्भर बहता है । उनके स्तवनों में अनुभवी भक्त एवं शास्त्र ज्ञाता की वाणी है तो पदों में कवि की वाणी है । ऐसे भक्ति एवं वैराग्य के संगम योगिराज को शत-शत वन्दन ।
* मदनलाल अमीचन्द सुराणा
सर्राफा बाजार, नागौर (राजस्थान )
योगिराज श्रीमद् श्रानन्दघनजी कहते हैं कि 'इस जगत् में पाव घड़ी जीने मृत्यु से पूर्व धर्माराधना कर लेनी चाहिए । ऐसे अध्यात्मयोगी को कोटि-कोटि वन्दन ।
का भी भरोसा नहीं है । अतः आत्मन् ! तू सचेत हो जा ।'
शा. वृद्धिचन्द किरणचन्द नाहर x 151, एवेन्यू रोड, बैंगलोर (कर्नाटक)
'हे भोले मानव ! यह तेरी कितनी अज्ञान दशा है ! तू अत्यन्त 'असावधान है । तू सचेत क्यों नहीं होता ? यदि काल-तोपची आया तो तुझे घर दबायेगा ।' ऐसे अनन्य उपदेशक योगिराज को शत-शत नमन ।
अनिल कुमार सुनील कुमार जैन
35, पिन्जला सुब्रमनियम स्ट्रीट,
टी नगर (मामलम ) चेन्नई-600017