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________________ योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य-४०६ जिनवर-दर्शन में नयों की सापेक्षता से सम्पूर्ण जगत् के दर्शनों का अन्तर्भाव होता है। जैन दर्शन सागर तुल्य है। सागर में समस्त नदियाँ आकर मिलती हैं परन्तु नदियों में सागर की भजना जाने । . इससे स्पष्ट है कि सिद्धान्तों का अध्ययन करने में श्रीमद आनन्दघनजी ने अत्यन्त ध्यान दिया है। वे सिद्धान्तों के क्षयोपशमी मुनि थे। इसी प्रकार से उनके पदों में भी उनके गुणों की प्रान्तरिक झलक है। 'अवधू नटनागर की बाजी, जारणे न बामण काजी' पद में दृष्टान्त के द्वारा स्पष्टीकरण देकर आत्मा की उपादेयता के सम्बन्ध में उत्तम उद्गार प्रकट किये हैं। 'प्रातम अनुभव रसिक को, अजब सुन्यो विरतंत' पद में योग के अनुभव का वर्णन करके योग-ज्ञान का जगत् को परिचय दिया है। आत्मा को संन्यासी की उपमा दी है और देह को मठ की उपमा दी है। इससे अनुमान है कि उन्होंने संन्यासियों के किसी मठ में निवास किया होगा। 'अवध क्या सोवे तन मठ में' शीर्षक पद में श्रीमद् ने सहजसमाधि के स्वरूप का चित्रण किया है और अजपाजाप का दिग्दर्शन कराया है। "अनुभव नाथ कुक्यून जगावे' पद में सुमति आदि पात्रों के द्वारा अध्यात्म ज्ञान का स्वानुभव प्रकट किया है जो सचमुच मनन करने योग्य है। 'मेरे घट ज्ञान भानु भयो भोर' पद में ज्ञान रूपी सूर्य का हृदय में प्रकाश होने पर जो दशा होती है, वे उद्गार दृष्टिगोचर होते हैं। 'निशदिन जोउं तारी वाटडी, घरे प्रावो रे ढोला' शीर्षक पद में समता चेतन स्वामी की प्रतीक्षा कर रही है ये उद्गार हैं। समता को आत्मपति के प्रति कितना प्रेम है उसका स्पष्ट उल्लेख किया गया है। समता के उद्गारों में शुद्ध प्रेम-रस छलक रहा है । 'निशानी कहा बताव रे मेरा अगम अगोचर रूप' नामक पद में आत्मा की निशानी से सम्बन्धित उद्गार प्रकट हुए हैं। इस पद के सम्बन्ध में किंवदन्ती है कि जब श्रीमद् बीकानेर के बाहर श्मशान में रहते थे तब शहर में अनेक गच्छों के साधु निवास करते थे उस समय वहाँ अन्य दर्शनों के विद्वान् भी अनेक थे। उन्होंने उनसे मिलकर सत्य-असत्य का निर्णय ज्ञात करने का विचार किया। वे सब मिलकर श्रीमद् के पास
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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